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________________ ॐ आलिहित्ता काऊणं करेइ उवयारंति, किं ते-पाडल-मल्लिअ-चंपग-असोग-पुण्णाग-5 चूअमंजरी-णवमालिअ-बकुल-तिलग-कणवीर-कुंदकोज्जय-कोरंटय-पत्त-दमणय+ वरसुरहिसुगंधगंधिअस्स, कयग्गहगहिअ-करयलपब्भट्टविप्पमुक्कस्स, दसद्धवण्णस्स, कुसुमणिगरस्स तत्थ चित्तं जाणुस्सेहप्पमाणमित्तं ओहिनिगरं करता। म चंदप्पभवइर-वेरुलिअ-विमलदंडं, कंचणमणिरयणभत्तिचित्तं, कालागुरु-पवरॐ कुंदुरुक्कतुरुक्कधूव-गंधुत्तमाणुविद्धं च धूमवटि विणिम्मुअंतं, वेरुलिअमयं कडच्छुअं पग्गहेत्तु पयते, धूवं + दहइ, दहेत्ता सत्तट्ठपयाई पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्केत्ता वामं जाणुं अंचेइ जाव अंजलिं कटु पणामं करेइ # करेत्ता आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमेत्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव सीहासणे, ऊ तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसीयइ, सण्णिसित्ता अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी ५६. [ २ ] इस प्रकार वह राजा भरत सब प्रकार की ऋद्धि, धुति, बल, समुदय, आदर, विभूषा, वैभव, वस्त्र, पुष्प, गन्ध, अलंकार-इस सबकी शोभा से युक्त कलापूर्ण शैली में एक साथ बजाये गये ॐ शंख, प्रणव, पटह, भेरी, झालर, खरमुखी, मुरज, मृदंग, दुन्दुभि के निनाद के साथ जहाँ आयुधशाला ॥ थी, वहाँ आया। आकर चक्ररत्न की ओर देखते ही प्रणाम किया, प्रणाम कर जहाँ चक्ररत्न था, वहाँ आया, आकर मयूरपिच्छ (मोर पंख की पूंजणी) द्वारा चक्ररत्न को झाड़ा-पोंछा, झाड़-पोंछकर दिव्य 卐 जल-धारा द्वारा उसका सिंचन किया, सिंचन कर सरस गोशीर्ष-चन्दन से अनुलेपन किया, अनुलेपन कर अभिनव, उत्तम सुगन्धित द्रव्यों और मालाओं से उसकी अर्चा की, पुष्प चढ़ाये, माला, गन्ध, वर्णक एवं वस्त्र चढ़ाये, आभूषण चढ़ाये। फिर चक्ररत्न के सामने उजले, स्निग्ध, श्वेत, रत्नमय अक्षत चावलों 卐 से-(१) स्वस्तिक, (२) श्रीवत्स, (३) नन्दावर्त, (४) वर्धमानक, (५) भद्रासन, (६) मत्स्य, (७) कलश, 4 (८) दर्पण-इन अष्ट मंगलों का आलेखन किया। गुलाब, मल्लिका, चंपक, अशोक, आम्रमंजरी, 9 नवमल्लिका, वकुल, तिलक, कणवीर, कुन्दर, कुब्जक, कोरंटक, पत्र, दमनक-ये सुरभित-सुगन्धित पुष्प राजा ने हाथ में लिये, चक्ररत्न के आगे चढ़ाये, इतने चढ़ाये कि उन पंचरंगे फूलों का चक्ररत्ल के आगे जानु-प्रमाण-घुटने तक ऊँचा ढेर लग गया। तदनन्तर राजा ने धूपदान हाथ में लिया, जो चन्द्रकान्त, वज्र-हीरा, वैडूर्य रत्नमय दंडयुक्त, विविध चित्रांकन के रूप में संयोजित स्वर्ण, मणि एवं रत्नयुक्त, काले अगर, उत्तम कुन्दरुक, लोबान तथा धूप की गमगमाती महक से शोभित, वैडूर्य मणि से निर्मित था। आदरपूर्वक धूप जलाया, धूप जलाकर सात-आठ कदम पीछे हटा, बायें घुटने को ऊँचा किया, यावत् अंजलि बाँधे, चक्ररत्न को प्रणाम किया। प्रणाम कर आयुधशाला से निकला, निकलकर जहाँ बाहरी उपस्थानशाला-सभाभवन था, जहाँ सिंहासन था, वहाँ आया, आकर पूर्वाभिमुख हो सिंहासन पर विधिवत् बैठा। बैठकर अठारह श्रेणिप्रश्रेणि-सभी जाति-उपजाति के प्रजाजनों को बुलाया, बुलाकर उन्हें इस प्रकार कहा 56. [2] Thereafter king Bharat came to the ordnance store with all types of grandeur, regal splendour, royal strength, retinue, respectables, EFFFFFFFFFFFFFFFFFF听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听。 | जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र (138) Jambudveep Prajnapti Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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