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५५. तत्पश्चात् राजा भरत जहाँ स्नानघर था, वहाँ आया। उस ओर आकर स्नानघर में प्रविष्ट फ हुआ। वह स्नानघर मुक्ताजालयुक्त-मोतियों की अनेकानेक लड़ियों से सजे हुए झरोखों के कारण बड़ा सुन्दर था । उसका प्रांगण विभिन्न मणियों तथा रत्नों से खचित था । उसमें रमणीय स्नान - मंडप था। स्नान - मंडप में अनेक प्रकार से चित्रात्मक रूप में जड़ी गई मणियों एवं रत्नों से सुशोभित स्नान पीठ फ्र था। राजा सुखपूर्वक उस पर बैठा। राजा ने शुभोदक-न अधिक उष्ण, न अधिक शीतल, सुखप्रद जल, 5 5 गन्धोदक- चन्दन आदि सुगंधित पदार्थों से मिश्रित जल, पुष्पोदक - पुष्प मिश्रित जल एवं शुद्ध जल द्वारा 5 परिपूर्ण, कल्याणकारी, उत्तम स्नान-विधि से स्नान किया।
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ससिव्य पियदंसणे, णरवई धूव - पुप्फ-गंध- मल्ल - हत्थगए मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, 5 पडिणिक्खमित्ता जेणेव आउहघरसाला, जेणेव चक्करयणे, तेणामेव पहारेत्थ गमणाए ।
स्नान के अनन्तर राजा ने दृष्टिदोष, नजर आदि के निवारण हेतु रक्षाबन्धन आदि के सैकड़ों विधि-विधान संपादित किये। तत्पश्चात् रोएँदार, सुकोमल हरीतकी, विभीतक, आमलक आदि कसैली 5 वनौषधियों से रंगे हुए अथवा लाल या गेरुए रंग के वस्त्र से शरीर पोंछा । सरस- रसमय, सुगन्धित गोशीर्ष चन्दन का देह पर लेप किया । अदूषित - चूहों आदि द्वारा नहीं कुतरे हुए बहुमूल्य उत्तम या प्रधान वस्त्र भलीभाँति पहने । पवित्र माला धारण की। केसर आदि का विलेपन किया। मणियों से जड़े सोने के आभूषण पहने। हार-अठारह लड़ों के हार, अर्धहार-नौ लड़ों के हार तथा तीन लड़ों के हार और लम्बे, लटकते कटि सूत्र - करधनी या कंदोरे से अपने को सुशोभित किया। गले के आभरण धारण किये। 5 अँगुलियों में अंगूठियाँ पहनीं। इस प्रकार सुन्दर अंगों को सुन्दर आभूषणों से विभूषित किया। नाना
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मणिमय कंकणों तथा भुजबंधों द्वारा भुजाओं को कसा । यों राजा की शोभा और अधिक बढ़ गई। कुंडलों से मुख चमक रहा था। मुकुट से मस्तक देदीप्यमान था । हारों से ढका हुआ उसका वक्षःस्थल सुन्दर प्रतीत रहा था। राजा ने एक लम्बे, लटकते हुए वस्त्र को उत्तरीय (दुपट्टे) के रूप में धारण 5 किया। सोने की अंगूठियों के कारण राजा की अँगुलियाँ पीली लग रही थीं । सुयोग्य शिल्पियों द्वारा फ नानाविध मणि, स्वर्ण, रत्न-इनके योग से सुरचित उज्ज्वल, बड़े लोगों द्वारा धारण करने योग्य, सुन्दर
जोड़युक्त, उत्कृष्ट, प्रशंसनीय आकृतियुक्त सुन्दर वीरवलय-विजय कंकण धारण किया।
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अधिक क्या कहें ? इस प्रकार अलंकारयुक्त, वेशभूषा से विशिष्ट सज्जायुक्त राजा ऐसा लगता था, फ्र मानो कल्पवृक्ष हो । अपने ऊपर लगाये गये कोरंट (श्वेत) पुष्पों की मालाओं से युक्त छत्र, दोनों ओर 5 डुलाये जाते चार चँवर, देखते ही लोगों द्वारा किये गये मंगलमय जय शब्द के साथ राजा स्नान- गृह से बाहर निकला। स्नान-घर से बाहर निकलकर अनेक गणनायक - जनसमुदाय के प्रतिनिधि, दण्डनायक- 5 आरक्षि-अधिकारी, राजा–माण्डलिक नरपति यावत् नागरिक वृन्द, बड़े सेठ, सेनापति तथा सार्थवाह, 5 दूत - संदेशवाहक, संधिपाल - राज्य के सीमान्त - प्रदेशों के अधिकारी- इन सबसे घिरा हुआ राजा श्वेत, 5 विशाल बादल से निकले, ग्रहगण से देदीप्यमान आकाशस्थित तारागण के मध्यवर्ती चन्द्र के सदृश देखने 5 बड़ा प्रिय लगता था । वह हाथ में धूप, पुष्प, गन्ध, माला लिए हुए स्नानघर से निकला, निकलकर
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फ जहाँ आयुधशाला थी, जहाँ चक्ररन था, वहाँ के लिए चला।
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| जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
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Jambudveep Prajnapti Sutra
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