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moving. His chest appeared extremely beautiful with the garland he was wearing as he was in a very happy mood. Long garlands hanging from his neck also started moving. In a state of great curiosity the king got up quickly from his throne and after placing his foot on foot rest, he came down. He removed his shoes. He covered a part his face with a piece of cloth, clasped his hand and then went seven-eight steps towards Chakra 卐 Ratna. Thereafter, he sat on the ground with right knee touching the ground and the left knee raised upwards. He then bowed to Chakra Ratna with clasped hands rotating his clasped hands around his head. Then he gave all the ornaments he was wearing, except the crown, to the officer-in-charge of the ordnance store in charity. He gave him sufficient money that was sufficient for his livelihood. (He made arrangement for his livelihood for the remaining period of his life.) He honoured him and then allowed him to go. Then he sat on his throne facing eastwards.
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तए णं ते कोडुम्बियपुरिसा भरहेणं रण्णा एवं वृत्ता समाणा हट्ट० करयल जाव एवं सामित्ति आणाए विणणं वयणं पडिसुणंति, पडिसुणित्ता भरहस्स अंतियाओ पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता विणीयं रायहाणिं जाव करेत्ता, कारवेत्ता य तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।
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विनीता नगरी की सज्जा DECORATION OF VINITA CITY
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५४. तए णं से भरहे राया कोडुम्बियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाप्पिया ! विणीयं रायहाणिं सब्भिंतरबाहिरियं आसिय- संमज्जिय- सित्त- सुइगरत्थंतर-वीहियं, फ्र मंचाइमंचकलियं, णाणाविहरागवसण - ऊ सियझय - पडागाइपडागमंडियं, लाउल्लोइयमहियं, गोसीससरस- 5 रत्तचंदणकलसं, चंदणघडसुकय जाव गंधुद्धुयाभिरामं, सुगंधवरगंधियं, गंधवट्टिभूयं करेह, कारवेह; करेत्ता, कारवेत्ता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।
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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
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( 132 )
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५४. तत्पश्चात् राजा भरत ने कौटुम्बिक पुरुषों को - व्यवस्था से सम्बद्ध अधिकारियों को बुलाया, बुलाकर उन्हें कहा- देवानुप्रियो ! राजधानी विनीता नगरी की भीतर और बाहर से सफाई कराओ, 卐 सुगंधित जल का छिड़काव कराओ, नगरी की सड़कों और गलियों को स्वच्छ कराओ, वहाँ मंच, विशिष्ट 5 या उच्च मंच-मंचों पर मंच निर्मित कराकर उसे सज्जित कराओ, विविध रंगों में रंगे वस्त्रों से निर्मित 5 ध्वजाओं, पताकाओं - झंडियों, बड़ी-बड़ी झंडियों से उसे सुशोभित कराओ, भूमि पर गोबर का लेप 卐 कराओ, गोशीर्ष एवं आर्द्रलाल चन्दन से सुरभित करो, उसके प्रत्येक द्वारभाग को चंदनकलशों- 5 (चंदनचर्चित मंगलघटों और तोरणों से सजाओ) यावत् वातावरण को रमणीय सुरभिमय बनाओ, 5 जिससे सुगंधित धुएँ की प्रचुरता से वहाँ गोल-गोल धूममय छल्ले से बनते दिखाई दें। ऐसा कर आज्ञा पालने की सूचना करो।
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राजा भरत द्वारा यों कहे जाने पर व्यवस्थाधिकारी बहुत हर्षित एवं प्रसन्न हुए । जोड़कर 'स्वामी की जैसी आज्ञा' यों कहकर उसे- शिरोधार्य किया, शिरोधार्य कर राजा भरत के पास फ्र
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Jambudveep Prajnapti Sutra 卐 卐
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