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[प्र. ] तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आयारभावपडोआरे भविस्सइ ? # [उ. ] गोयमा ! काले भविस्सइ हाहाभूए, भंभाभूए एवं सो चेव दूसम-दूसमावेढओ णेअव्वो।
४७. आयुष्मन् श्रमण गौतम ! उस अवसर्पिणी काल के छठे आरक के इक्कीस हजार वर्ष व्यतीत हो जाने पर आने वाले उत्सर्पिणी-काल का श्रावण मास. कष्ण पक्ष प्रतिपदा के दिन बालव नामक करण में चन्द्रमा के साथ अभिजित नक्षत्र का योग होने पर चतुर्दशविध काल के प्रथम समय में दुषम-दुषमा आरक
प्रारम्भ होगा। उसमें अनन्त वर्ण-पर्याय आदि अनन्त गुण-परिवृद्धि-क्रम से परिवर्द्धित होते जायेंगे। म [प्र. ] भगवन् ! उस काल में भरत क्षेत्र का आकार/स्वरूप कैसा होगा? म [उ. ] आयुष्मन् श्रमण गौतम ! उस समय हाहाकारमय, चीत्कारमय स्थिति होगी, जैसा अवसर्पिणी
काल के छठे आरक के सन्दर्भ में वर्णन किया गया है। # 47. Blessed Gautam ! After the completion of 21,000 years of sixth fi aeon of Avasarpani time-cycle on the first day of dark fortnight of the fi month of Shravan when Abhijit constellation is in line with the moon in
the first part of fourteen types of time period, Dukham-Dukhma the first 5 aeon of Utsarpani time-cycle shall start. There shall be gradual increase fi in the colour and the like of various things.
(Q.) Reverend Sir ! What shall be the shape of Bharat area at that time?
(Ans.] Blessed Gautam ! The condition at that time shall be very dreadful and perturbed. It shall be the same as that of the sixth aeon of Avasarpani time-cycle already mentioned above. दुषमा-द्वितीय आरक : पुष्कर संवर्तक महामेघ DUKHMA-THE SECOND AEON : PUSHKAR CLOUDS
४८. [१] तीसे णं समाए एक्कवीसाए वाससहस्सेहिं काले विइक्कंते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहिं जाव अणंतगुणपरिवुद्धीए परिवद्धेमाणे २ एत्थ णं दूसमा णामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो!
तेणं कालेणं तेणं समएणं पुक्खलसंवट्टए णामं महामेहे पाउन्भविस्सइ भरहप्पमाणमित्ते आयामेणं, तदणुरूवं च णं विक्खंभबाहल्लेणं। तए णं से पुक्खलसंवट्टए महामेहे खिप्पामेव पतणतणाइस्सइ, खिप्पामेव पतण-तणाइत्ता खिप्पामेव पविजुआइस्सइ, खिप्पामेव पविज्जुआइत्ता खिप्पामेव जुग-मुसलमुट्ठिप्पमाणमित्ताहिं धाराहिं ओघमेघं सत्तरत्तं वासं वासिस्सइ, जेणं भरहस्स वासस्स भूमिभागं इंगालभूअं, मुम्मुरभूअं, छारिअभूअं, तत्तकवेल्लुगभूअं, तत्तसमजोइभूअंणिव्बाविस्सति त्ति।
४८. [१] उस उत्सर्पिणी काल के प्रथम आरक दुषम-दुषमा के इक्कीस हजार वर्ष व्यतीत हो जाने पर उसका दुषमा नामक द्वितीय आरक प्रारम्भ होगा। उसमें अनन्त वर्ण-पर्याय आदि अनन्त गुण-परिवृद्धि-क्रम से परिवर्द्धित होते जायेंगे।
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द्वितीय वक्षस्कार
(115)
Second Chapter
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