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________________ अफ्र फफफफफफफफफ 卐 卐 ४६. [ प्र. २ ] भगवन् ! उस काल में भरत क्षेत्र में मनुष्यों का आकार / स्वरूप कैसा होगा ? [उ.] गौतम ! उस समय मनुष्यों का रूप, रंग, गंध, रस तथा स्पर्श अनिष्ट- अच्छा नहीं लगने वाला, अकान्त - कमनीयतारहित, अप्रिय, अशुभ, अमनोज्ञ-मन को नहीं भाने वाला तथा अमनोऽम- मन को नहीं रुचने वाला होगा। उनका स्वर हीन, दीन, अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अमनोगम्य और अमनोज्ञ होगा। उनका वचन, जन्म अशोभन होगा। वे निर्लज्ज, छल, दूसरों को ठगने हेतु विविध प्रयत्न वाले होंगे। झगड़ा, रज्जु आदि द्वारा बन्धन तथा शत्रुभाव में निरत होंगे। मर्यादाएँ लाँघने, तोड़ने में प्रधान, अकार्य करने में सदा उद्यत एवं गुरुजन के आज्ञा-पालन और विनय से रहित होंगे। वे असंपूर्ण देहांगयुक्त - काने, लँगड़े, चतुरंगुलिक आदि, आजन्म संस्कारशून्यता के कारण बढ़े हुए नख, 5 केश तथा दाढ़ी-मूँछयुक्त, काले, कठोर स्पर्शयुक्त, गहरी रेखाओं या सलवटों के कारण फूटे हुए मस्तकयुक्त, धुएँ के से वर्ण वाले तथा सफेद केशों से युक्त, अत्यधिक स्नायुओं - नाड़ियों से परिबद्ध या फ्र छाये हुए होने से दुर्दर्शनीय रूपयुक्त, देह में पास-पास पड़ी झुर्रियों की तरंगों से परिव्याप्त अंगयुक्त, 卐 से 卐 5 जरा-जर्जर बूढ़ों के सदृश, दूर-दूर टूटी दन्त श्रेणीयुक्त, घड़े के विकृत मुख सदृश मुखयुक्त अथवा भद्दे 5 卐 में उभरे हुए मुख तथा घांटी युक्त, असमान नेत्रयुक्त, टेढ़ी नासिकायुक्त, झुर्रियों से वीभत्स, भीषण 卐 5 मुखयुक्त, दाद, खाज आदि से विकृत, कठोर चर्मयुक्त, चितकबरे अवयवमय देहयुक्त, पाँव एवं खसर- फ्र नामक चर्मरोग से पीड़ित, कठोर, तीक्ष्ण नखों से खाज करने के कारण व्रणमय या खरोंची हुई देहयुक्त, टोलगति - ऊँट आदि के समान चालयुक्त या टोलाकृति - विकृत आकारयुक्त, टेड़ी-मेढ़ी अस्थियुक्त, 5 पौष्टिक भोजनरहित, शक्तिहीन, जिनका संहनन, परिमाण, संस्थान एवं रूप, कुत्सित होना था। आश्रय, 卐 卐 सिन्भफुडिअ - फरुसच्छवी, चित्तलंगमंगा, कच्छूखसराभिभूआ, खरतिक्खणक्ख - कंडूइअ - विकयतणू, फ्र टोलगतिविसमसंधिबंधणा, उक्कडुअट्ठि - अविभत्तदुब्बलकुसंघयणकुप्पमाणकुसंठिआ, कुट्ठाणासण - कुसेज्कुभोइणो, असुइणो, अणेगवाहिपीलि अंगमंगा, खलंतविन्भलगई, सत्तपरिवज्जिया विगयचेट्ठा, नट्ठतेआ, अभिक्खणं सीउण्ह - खरफरुस - वायविज्झडिअ - मलिण- फ्र पंसुर ओगुंडि अंगमंगा, बहुकोमाणमायालोभा, बहुमोहा, असुभदुक्खभागी, कुरुवा, णिरुच्छाहा, धम्मसण्णसम्मत्तपरिब्भट्ठा, उक्कोसेणं रयणिप्पमाणमेत्ता, सोलसवीसइवासपरमाउसो, बहुपुत्त- 5 परियालपणयबहुला गंगासिंधूओ महाणईओ वेअड्डुं च पळयं नीसाए बावत्तरिं णिगोअबीअं बीअमेत्ता बिलवासो मणुआ भविस्संति । 卐 卐 आसन, शय्या तथा भोजन भी कुत्सित अपवित्र होगा । अथवा श्रुत-शास्त्र ज्ञान-वर्जित, अनेक व्याधियों क 5 से पीड़ित लड़खड़ाकर चलने वाले, उत्साहरहित, सत्त्वहीन, निश्चेष्ट, तेजोविहीन, निरन्तर शीत, उष्ण, 5 卐 रूप 5 कठोर वायु से व्याप्त शरीरयुक्त, मलिन धूलि से आवृत देहयुक्त होंगे बहुत क्रोधी, अहंकारी, 5 मायावी, लोभी तथा मोहमय, अशुभ कार्यों के परिणामस्वरूप अत्यधिक दुःखी, प्रायः धार्मिक श्रद्धा तथा 5 卐 ओसणं तीक्ष्ण, सम्यक्त्व से परिभ्रष्ट होंगे। उत्कृष्टतः उनके शरीर की ऊँचाई - एक हाथ - ( चौबीस अंगुल) की होगी । उनका अधिकतम आयुष्य - स्त्रियों का सोलह वर्ष का तथा पुरुषों का बीस वर्ष का होगा। अपने पौत्रमय Jambudveep Prajnapti Sutra जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र 5 5 5 5 5 5 55 55 5 595555955 5 5 5 5 5 5 55 5 55 (110) Jain Education International 卐 இதததததததததததி*********************தமிழி For Private & Personal Use Only 55555555 फ्र 卐 www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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