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४३. [ ६ ] फिर उन अनेक भवनपति, वैमानिक आदि देवों ने तीर्थंकर भगवान का परिनिर्वाण 5 महोत्सव मनाया। ऐसा कर वे नन्दीश्वर द्वीप में आ गये । देवराज, देवेन्द्र शक्र ने पूर्व दिशा में स्थित फ अंजनक पर्वत पर अष्टदिवसीय परिनिर्वाण - महोत्सव मनाया। देवराज, देवेन्द्र शक्र के चार लोकपालों ने 5 चारों दधिमुख पर्वतों पर अष्टदिवसीय परिनिर्वाण महोत्सव मनाया। देवराज ईशानेन्द्र ने उत्तरदिशावर्ती 卐 अंजनक पर्वत पर अष्टदिवसीय परिनिर्वाण - महोत्सव मनाया। उसके लोकपालों ने चारों दधिमुख पर्वतों फ पर अष्टाह्निक परिनिर्वाण - महोत्सव मनाया। चमरेन्द्र ने दक्षिण दिशावर्ती अंजनक पर्वत पर उसके 5 लोकपालों ने दधिमुख पर्वतों पर परिनिर्वाण - महोत्सव मनाया। बलि ने पश्चिम दिशावर्ती अंजनक पर्वत पर और उसके लोकपालों ने दधिमुख पर्वतों पर परिनिर्वाण - महोत्सव मनाया।
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इस प्रकार बहुत से भवनपति, वाणव्यन्तर आदि देवों ने अष्टदिवसीय महोत्सव मनाये। ऐसा कर वे जहाँ-तहाँ अपने विमान, भवन, सुधर्मा सभाएँ तथा अपने माणवक नामक चैत्यस्तम्भ थे, वहाँ आये । आकर जिनेश्वर देव की दाढ़ आदि अस्थियों को वज्रमय-हीरों से निर्मित गोलाकार मंजूषा में रखा। रखकर अभिनव, उत्तम मालाओं तथा सुगन्धित द्रव्यों से अर्चना की । अर्चना कर अपना विपुल सुखोपभोगमय जीवन बिताने लगे।
43. [6] Then many Bhavanapati, Vaimanik and other gods celebrated the salvation of Tirthankar and others in a grand manner. They then came to Nandishvar island. They then celebrated eight day festival. Shakrendra celebrated it at Anjanak mountain located in the east, his four guardian gods (Lok-pal) celebrated it on four Dadhimukh mountains. Ishanendra celebrated it on Anjanak mountain located in the north and his guardian gods of four directions on four Dadhimukh mountains. Chamarendra celebrated it on Anjanak mountain located in the south, his security guards of four directions on the respective Dadhimukh mountains. Bali celebration it on Anjanak mountain located in the west and his lokpals on respective Dadhimukh mountains.
Thus many Bhavanapati, Vaimanik and other divine beings participated in the celebration lasting eight days. Thereafter, they came to their Vimaans, abodes, Sudharma halls and respective memorial pillars. They then placed the molars, bones and the like of the Tirthankar in the diamond studded round jewellery-boxes. They then worshiped them with fresh garlands and fragrant incense. After all these ceremonies, they started living peacefully enjoying their life-span.
अवसर्पिणी: दुषम- सुषमा AVASARPANI DUKHMA-SUKHAMA
द्वितीय वक्षस्कार
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४४. तीसे णं समाए दोहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं जाव फ्र परिहायमाणे परिहायमाणे एत्थ णं दूसमसुसमा णामं समा काले पडिवज्जिंसु समणाउसो !
Second Chapter
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