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| चित्र परिचय
आदि तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का निर्वाण
भगवान ऋषभदेव के निर्वाण प्राप्त होने पर इन्द्र आदि देव-देवियाँ भगवान का परिनिर्वाण म महोत्सव मनाने पृथ्वी पर आये। देवेन्द्र द्वारा आज्ञा प्राप्त कर ज्योतिष्क एवं वाणव्यंतर देवों ने सर्वश्रेष्ठ 5
गोशीर्ष चन्दन से तीन चिताओं की रचना की। एक भगवान के लिये, एक गणधरों के लिए एवं एक है
अणगारों के लिये। ॐ फिर क्षीरोदक समुद्र के जल से भगवान के पार्थिव शरीर को स्नान कराकर गोशीर्ष चन्दन का
विलेपन किया। देवदूष्य वस्त्र धारण कराये और तीन दिव्य शिविकाओं की रचना की। एक शिविका ॐ में भगवान को बैठाकर चिता पर रखा। (एक पर गणधर एवं एक पर अन्य साधुओं को।)
अग्निकुमार देवों ने अग्नि की विकुर्वणा कर चिता में अग्नि प्रज्वलित की। वहाँ उपस्थित सभी ॐ देवेन्द्रों, देव-देवियों ने अश्रुपूरित नेत्रों से भगवान की चिता को हाथ जोड़ नमस्कार किया। तत्पश्चात् भनन्दीश्वर द्वीप आकर अष्ट दिवसीय परिनिर्वाण महोत्सव मनाया।
-वक्षस्कार २, सूत्र ४३
NIRVANA OF BHAGAVAN RISHABHDEV When Bhagavan Rishabhdev attained nirvana, Indra and other gods and 4 goddesses came to conduct the Parinirvana celebrations. With the permission of the king of gods, Jyotishk and Vanavyantar gods created three funeral pyres with best Goshirsh sandalwood. One for Bhagavan, one for Ganadhars and one for other ascetics.
After that the worldly body of Bhagavan was anointed with the water from Kshirodak Sea and sandalwood paste was smeard on it. Divine clothes were puts on. Now three palanquins were created. One was used for placing Bhagavan body in sitting posture. (one for Ganadhar and one for other ascetics). These palanquins were placed on the funeral pyre. Now Agnikumar gods created fire and lit these fureral pyres. All kings of gods and other gods and goddesses joined their palms and paid homege to the funeral pyres with tear filled eyes. At last they all went to Nandishwar Dveep and organised an eight day Parinirvan celebration.
– Vakshaskar 2, Sutra 43
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