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Then with a melancholy, sad heart and tears coming out of his eyes, Shakrendra placed the body of the Tirthankar who had become totally liberated from cycles of birth and death after destroying the bondage of birth, old age and death, on a Shivika. Thereafter, he placed it on the pyre. Bhavanapati and Vaimanik gods placed the bodies of ganadhars and other monk who had crossed the cycle of birth and death on the respective Shivikas and then on the pyre.
४३. [३] तए णं सक्के देविंदे, देवराया अग्गिकुमारे देवे सदावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! तित्थगरचिइगाए। (गणहरचिइगाए) अणगारचिइगाए अगणिकायं 5 विउव्वह, विउव्वित्ता एअमाणतिरं पच्चप्पिणह। तए णं ते अग्गिकुमारा देवा विमणा, णिराणंदा,
अंसुपुण्णणयणा तित्थगरचिइगाए जाव अणगारचिइगाए अ अगणिकायं विउव्वंति।
तए णं से सक्के देविंदे, देवराया वाउकुमारे देवे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं क्यासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! तित्थगरचिइगाए जाव अणगारचिइगाए अ वाउक्कायं विउव्वह, विउवित्ता अगणिकायं म उज्जालेह, तित्थगरसरीरगं, गणहरसरीरगाई, अणगारसरीरगाई, च झामेह। तए णं ते वाउकुमारा देवा ॥
विमणा, णिराणंदा, अंसुपुण्णणयाणा तित्थगरचिइगाए जाव विउव्वंति, अगणिकायं उज्जालेंति, ॐ तित्थगरसरीरगं (गणहरसरीरगाणि) अणगारसरीरगाणि अ झाति। तए णं से सक्के देविंदे, देवराया ते ॥ भी बहवे भवणवइ जाव वेमाणिए देवे एवं वयासी-खिप्पाभेव भो देवाणुप्पिया ! तित्थगरचिइगाए जाव 5 अणगारचिइगाए अगुरुतुरुक्कघयमधुं च कुंभग्गसो अ भारग्गसो अ साहरइ। तए णं ते भवणवइ जाव
तित्थगर-(चिइगाए, गणहरचिइगाए, अणगारचिइगाए अगुरुतुरुक्कघयमधुं च कुंभग्गसो अ) भारग्गसो ॐ असाहरंति।
तए णं से सक्के देविंदे देवराया मेहकुमारे देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो ॐ देवाणुप्पिआ ! तित्थगरचिइगं जाव अणगारचिइगं च खीरोदगेणं णिवावेह। तए णं ते मेहकुमारा देवा
तित्थगरचिइगं जाव णिवावेति। ___ ४३. [ ३ ] देवराज शक्रेन्द्र ने तब अग्निकुमार देवों को पुकारकर कहा-देवानुप्रियो ! तीर्थंकर की चिता में, (गणधरों की चिता में) तथा साधुओं की चिता में शीघ्र अग्निकाय की विकुर्वणा करो-अग्नि उत्पन्न करो। इस पर उदास, दुःखित तथा अश्रुपूरित नेत्र वाले अग्निकुमार देवों ने तीर्थंकर की चिता, फ़ गणधरों की चिता तथा अनगारों की चिता में अग्निकाय की विकुर्वणा की। देवराज शक्र ने फिर वायुकुमार देवों को पुकारकर कहा-तीर्थंकर की चिता एवं अनगारों की चिता में वायुकाय की विकुर्वणा कर अग्नि प्रज्वलित करो, तीर्थंकर की देह को, गणधरों तथा अनगारों की देह को 5
अग्निसंयुक्त करो। विमनस्क, शोकान्वित तथा अश्रुपूरित नेत्र वाले वायुकुमार देवों ने चिताओं में वायुकाय की विकुर्वणा की-पवन चलाया, तीर्थंकर-शरीर (गणधर-शरीर) तथा अनगार-शरीर अग्नि संयुक्त किये। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
Jambudveep Prajnapti Sutra 85
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