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३१. [प्र. १८] भगवन् ! क्या उस समय भरत क्षेत्र में गर्त-गड्ढे, दरी-कन्दराएँ, अवपात-ऐसे गुप्त खड्डे, जहाँ प्रकाश में चलते हुए भी गिरने की आशंका बनी रहती है, प्रपात-ऐसे स्थान, जहाँ से व्यक्ति मन में कोई कामना लिए गिरकर प्राण दे दे, विषम-जिन पर चढ़ना-उतरना कठिन हो, ऐसे स्थान, विज्जल-चिकने कर्दममय स्थान-ये सब होते हैं ? _ [उ. ] गौतम ! ऐसा नहीं होता। उस समय भरत क्षेत्र में बहुत समतल तथा रमणीय भूमि होती है। वह मुरज के ऊपरी भाग आदि की ज्यों एक समान होती है।
31. (Q. 18] Reverend Sir ! Did caverns, gorges, ditches where there is risk of falling even while moving in sunlight, such places where one may commit suicide in a fit of some unfulfilled desire in his mind and muddy places exist in Bharat area at that time?
[Ans.] Gautam ! It is not true. At that time the land of Bharat area was very much levelled like the upper surface of a drum. ___३१. [प्र. १९ ] अस्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे खाणूइ वा, कंटग-तणय-कयवराइ वा, पत्तकयवराइ वा ?
[उ. ] णो इणढे समढे, ववगय-खाणु-कंटग-तण-कयवरपत्तकयवरा णं सा समा पण्णत्ता।
३१. [प्र. १९] भगवन् ! क्या उस समय भरत क्षेत्र में स्थाणु-ऊर्ध्व काष्ठ-शाखा, पत्र आदि से रहित वृक्ष-दूंठ, काँटे, तृणों का कचरा तथा पत्तों का कचरा-ये होते हैं।
[उ. ] गौतम ! ऐसा नहीं होता। वह भूमि स्थाणु, कंकर, तृणों के कचरे तथा पत्तों के कचरे से रहित होती है।
81. (Q. 19) Reverend Sir ! Did withered trees, thorns, trash of hay and dry leaves exist in Bharat area at that time?
(Ans.) Gautam ! It is not true. That land is free from trash of wood, shinghal, hay collection and decaying leaves.
३१. [प्र. २०] अस्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे डंसाइ वा, मसगाइ वा, जूआइ वा, लिक्खाइ घा, टिंकुणाइ वा, पिसुआइ वा ? ।
[उ.] णो इणढे समढे, ववगयडंस-मसग-जूअ-लिक्ख-टिंकुणपिसुआ उवद्दवविरहिआ णं सा समा पण्णत्ता।
३१. [प्र. २० ] भगवन् ! क्या उस समय भरत क्षेत्र में डांस, मच्छर, जुंए, लीखें, खटमल तथा पिस्सू होते हैं?
[उ.] गौतम ! ऐसा नहीं होता। वह भूमि डांस, मच्छर, लूँ, लीख, खटमल तथा पिस्सू-वर्जित एवं उपद्रव-विरहित होती है।
बितीय पक्षस्कार
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Second Chapter
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