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RODAMADARADARAOKTAORTIOKHAOIMAORMAOIHIOIRAORomanmarwarwrimarimmarmarrimarmarmarmaromanimammy
Many of the Shramans were performing austerities like Bhikshupratima of one month duration, two month duration and so on up to seven month duration. Many were indulging in austerities like Pratham Saptaratrindiva (one week duration) Bhikshupratima, Dvitiya Saptaratrindiva (two one week duration) Bhikshupratima, Tritiya Saptaratrindiva (three one week duration) Bhikshupratima. The other austerities these Shramans were performing are-Saptasaptamika (seven-seven day duration Bhikshupratima), Ashtaashtamika (eight-eight day duration Bhikshupratima), Navanavamika (nine-nine day duration Bhikshupratima), Dashadashamika (ten-ten day duration Bhikshupratima), Laghumokapratima, Mahamokapratima, Yavamadhyachandrapratima and Vajramadhyachandrapratima.
विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में श्रमणों की लब्धि-सम्पन्नता का संक्षेप में सूचन मात्र किया है। इस सम्बन्ध में यह जानना चाहिए कि यहाँ लब्धि का अर्थ है-तप आदि द्वारा कर्मक्षय होने पर विशिष्ट आत्म-शक्ति की
उपलब्धि। लब्धि-प्राप्ति के मुख्य तीन कारण हैं-शुभ परिणाम, उत्कृष्ट तपःसाधना तथा निर्मल संयम 1 आराधना। जैसा कहा है
“परिणाम तव वसेण इयाई हुंति लद्धीओ।" -प्रवचन-सारोद्धार २७०/१४४९५ मूल आगम तथा उत्तरवर्ती ग्रन्थों में लब्धियों के विषय में बहुत विस्तृत वर्णन है। कहीं इसके दस भेद बताये हैं, कहीं अट्ठाईस, कहीं उनतीस तथा कहीं इससे भी अधिक। भगवतीसूत्र, शतक ९, उद्देशक २ में दसविहा लद्धी पण्णत्ता-दस प्रकार की लब्धि कही है। इनका विस्तार करके उनतीस भेद टीका में बताये हैं। यहाँ (६ पर जिन तपोजन्य लब्धियों का वर्णन है उनके विषय में यह माना जाता है कि ये विशिष्ट तपःसाधना द्वारा कर्मों 6 की विशेष निर्जरा होने पर आत्मा में शक्ति रूप में प्रकट होती हैं परन्तु तपस्वी श्रमण जब मन में संकल्प करके । इनका परोपकारार्थ उपयोग करना चाहे तभी ये प्रभावकारी होती हैं। जैसा आवश्यकचूर्णि में कहा है
__“आमोसहिपत्ताणं रोगाभिभूतं अत्ताणं परं वा जवेवि तिगिच्छामी।
ति संचित्तेऊण आसुरति ते तक्खणा चेव ववगयरोगातंकं करोति॥" -आवश्यकचूर्णि १ ___ आमदैषधि प्राप्त श्रमण जब अपने लिए या दूसरे के लिए यह संकल्प करता है कि “मैं इसे स्वस्थ । करूँ" तभी वह उसका स्पर्श कर उसे रोगमुक्त करता है, अर्थात् जब तक संकल्प नहीं करता वह लब्धि औषधि रूप में कार्य नहीं करती, किन्तु कुछ तपस्वियों के मल, मूत्र, पसीना आदि की गंध या स्पर्श से सहज ही दूसरे रोग मुक्त हो जाते हैं, ऐसे भी अनेक उदाहरण ग्रन्थों में मिलते हैं। विशेष वर्णन के लिए प्रवचन-सारोद्धार, द्वार २७१ की टीका व व्याख्या देखना चाहिए।
सूत्र में वर्णित रत्नावली, कनकावली, एकावली आदि तपों का विस्तृत वर्णन अन्तकृद्दशासूत्र के अष्टम वर्ग में प्राप्त है। पाठक सचित्र अन्तकृद्दशासूत्र, पृष्ठ ३५६-३५८ में देखें तथा भद्र, महाभद्र आदि प्रतिमाओं का वर्णन उसी सूत्र में पृष्ठ ३८४-३९२ में देखना चाहिए।
CosmrrontronrmmomromamromanwroomromNOWOMEOPORTIOTIONYMOTAORTIONAONTARVAONTARVAORTHORVARIANTARVAORTAORVANAOD
समवसरण अधिकार
Samavasaran Adhikar
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