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र ज्ञान को सुनकर अर्थ रूप विशाल वृक्ष की भाँति विस्तार देने वाली बुद्धि। जैसे गणधर 2 तीर्थंकरों के मुख से त्रिपदी को सुनकर सम्पूर्ण द्वादशांगी की रचना कर देते हैं। पट बुद्धि-पट
अर्थात् वस्त्र, जिस प्रकार वस्त्र विस्तृत तन्तुओं को अपने में समेटे हुए रहता है उसी प्रकार प्रचुर सूत्रज्ञान को स्मृति में संग्रहीत किये रखने में समर्थ । पदानुसारी बुद्धि-सूत्र के एक पद या एक वाक्य को सुनकर उसके सैकड़ों पदों का अनुसरण (ज्ञान प्राप्त) करने में समर्थ।
(७) संभिन्न स्रोतो लब्धि-जिस लब्धि के प्रभाव से शरीर के सभी प्रदेशों में श्रवण-शक्ति उत्पन्न हो जाती है अथवा जिस लब्धि के प्रभाव से पाँच-इन्द्रियों से ग्राह्य-विषय को एक ही श्रोत्र इन्द्रिय से ग्रहण करने की शक्ति पैदा हो जाती है, अथवा जिस लब्धि से बारह योजन तक विस्तृत चक्रवर्ती के सैन्य में बजने वाले विविध वाद्यों व विविध स्वरों को एक ही साथ अलग-अलग करके सुना जा सकता है, ऐसी अद्भुत श्रोत्र (श्रवण) लब्धि से सम्पन्न।
(८) क्षीर-मधु-सर्पिरास्रव लब्धि-जिस लब्धि के प्रभाव से वक्ता का वचन, श्रोता को दूध, मधु और घृत के स्वाद की तरह मधुर व आल्हादकारी लगता है। (कहा जाता है-गन्ने a का चारा चरने वाली एक लाख गायों का दूध पचास हजार गायों को, उनका दूध पच्चीस 5 हजार गायों को, इस प्रकार आधा-आधा करके अन्त में एक गाय को पिलाने पर उसका दूध एवं उससे बना मंद आँच पर पकाया हुआ घी जैसा मधुर होता है, उससे भी अधिक मधुर वचन इस लब्धि के प्रभाव से मिलता है। ऐसा दूध और घी मन की संतुष्टि एवं शरीर की पुष्टि करने वाला होता है, वैसे इस लब्धि से सम्पन्न आत्मा का वचन, श्रोता के तन-मन को आह्लादित करता है।)
(९) कई अक्षीणमहानसिक लब्धिधारी थे। (जिस घर से मुनि भिक्षा ले आयें, उस घर की बची हुई भोजन सामग्री जब तक भिक्षा देने वाला स्वयं भोजन नहीं कर लेता है, तब a तक लाखों मनुष्यों को भोजन करा देने पर भी समाप्त नहीं होती। पात्र तभी खाली होता है, जब लब्धिधारी स्वयं उस भिक्षा का उपयोग कर लेता है।) (१०) कई ऋजुमति तथा कई विपुलमति मनःपर्यवज्ञान के धारक थे।
(११) कई विकुर्वणा-वैक्रियलब्धि (भिन्न-भिन्न रूप बना लेने के शक्ति) से युक्त थे। 8 (१२) कई चारण-गति सम्बन्धी विशिष्ट क्षमता लिए हुए थे।
(१३) कई विद्याधरप्रज्ञप्ति आदि विद्याओं के धारक थे।
(१४) कई आकाशातिपाती-आकाशगामिनी शक्ति सम्पन्न थे। (अथवा आकाश से हिरण्य आदि इष्ट तथा अनिष्ट पदार्थों की वर्षा कराने की क्षमता-सम्पन्न थे।)
(१५) कई आकाशातिवादी-आकाश आदि अमूर्त पदार्थों को सिद्ध करने में समर्थ थे। समवसरण अधिकार
Samavasaran Adhikar
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