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He had risen above all sentiments of love, attachment, aversion and fondness.
He was the propagator of the nirgranth sermon (the tenets of Jainism). He was the leader, founder and head of the religious order.
He remained surrounded by groups of ascetics.
He was endowed with the thirty four unique superlative attributes of a Tirthankar and the thirty five unique superlative attributes of speech. (For details see Illustrated Tirthankar Charitra, Appendix 3)
When moving he was heralded by divine felicitations in the sky, namely, a wheel, an umbrella, whisks, a throne with a footrest as transparent as clear sky and the flag of religion.
Fourteen thousand male ascetics (sadhus) and thirty six thousand female ascetics (sadhvis) accompanied him.
Wandering comfortably from one village to another he arrived in a suburb of Champa city on way to the Purnabhadra Chaitya in Champa.
विवेचन-इस सूत्र में भगवान महावीर के अत्यन्त प्रभावशाली, चित्ताकर्षक एवं मनोहर व्यक्तित्व के विविध रूपों को अनेक ललित उपमाओं से मण्डित कर हूबहू शब्द चित्र उपस्थित किया गया है। विश्व
के प्रायः सभी धर्म-सम्प्रदायों ने अपने आराध्य महापुरुषों को सामान्य व्यक्तियों से पृथक् विशिष्ट रूप ॐ में चित्रित किया है। वे अनुपम शारीरिक सौन्दर्य-शुभ लक्षण, बल, बुद्धि तथा विशिष्ट आत्मिक वैभव
से सम्पन्न होते हैं। तीर्थंकर विश्व में सबसे महान् लोकोत्तम महापुरुष होते हैं, उनका अद्भुत अद्वितीय * शरीर-बल, असीम आत्म-बल होता है तथा शरीर में एक हजार आठ शुभ लक्षण होते हैं।
ऐसा कहा जाता है सामान्य व्यक्ति में एकाध शुभ लक्षण होता है। उससे बढ़कर किसी विरले में बत्तीस शुभ लक्षण पाये जाते हैं। उत्तम पुरुषों में एक सौ आठ शुभ लक्षण होते हैं। लौकिक सम्पदा के
धनी चक्रवर्ती में एक हजार आठ शुभ लक्षण होते हैं, परन्तु वे कुछ अस्पष्ट होते हैं, जबकि तीर्थंकरों के * शरीर पर वे शुभ लक्षण स्पष्ट दिखाई देते हैं। * तीर्थंकर भगवान के ३४ अतिशय तथा ३५ वचनातिशय का विस्तृत कथन समवायांगसूत्र, समवाय * ३४-३५ में उपलब्ध है तथा हिन्दी जैन तत्त्व कलिका (सम्पादक श्री अमर मुनि), प्रथम कलिका,
पृष्ठ ९-१६ तक में विस्तारपूर्वक दिया गया है। पाठक वहाँ देख लें।
Elaboration—This aphorism presents a vivid verbal illustration of the extremely impressive, magnetic and spectacular personality of Bhagavan * औपपातिकसूत्र
(42)
Aupapatik Sutra
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