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समणगविंदपरियट्ठिए,
चउत्तीसबुद्धवयणाइसेसपत्ते, पणतीससच्चवयणाइसेसपत्ते,
चामराहिं,
आगासगएणं चक्केणं, आगासगएणं छत्तेणं, आगासियाहिं आगासफलियामएणं सपायपीढेणं सीहासणेणं, धम्मिज्झएणं पुरओ पकडिज्जमाणेणं, चउद्दसहिं समणसाहस्सीहिं, छत्तीसाए अज्जियासाहस्सीहिं सद्धिं संपरिवुडे, पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे, गामाणुगामं दूइज्जमाणे, सुहंसुहेणं विहरमाणे चंपाए नयरीए बहिया उवणगरग्गामं उवागए चंपं नगरिं पुण्णभद्दं चेइयं समोसरिउकामे ।
१६. (ग) वे प्राणातिपात आदि आस्रवरहित, ममतारहित अकिंचन थे । वे भव-प्रवाह को नष्ट कर चुके थे - निरुपलेप - द्रव्य-दृष्टि से निर्मल देहधारी तथा भाव - दृष्टि से कर्मबन्ध के हेतु रूप लेप से रहित थे।
प्रेम, राग, द्वेष और मोह का क्षय कर चुके थे ।
निर्ग्रन्थ-प्रवचन के उपदेष्टा, धर्म-शासन के नायक, प्रतिष्ठापक तथा श्रमणपति थे। श्रमणवृन्द से घिरे रहते थे।
जिनेश्वरों के चौंतीस बुद्ध - अतिशयों से तथा पैंतीस सत्य - वचनातिशयों से (विस्तार हेतु देखें - सचित्र तीर्थंकर चरित्र, परिशिष्ट ३ )
युक्त
चक्र, छत्र, चँवर तथा आकाश के समान स्वच्छ स्फटिक से बने पाद - पीठ सहित सिंहासन एवं धर्मध्वज-ये उनके आगे आकाश से अन्तरिक्ष में चलते थे ।
चौदह हजार साधु तथा छत्तीस हजार साध्वियों से संपरिवृत - घिरे हुए थे ।
आगे से आगे चलते हुए, एक गाँव से दूसरे गाँव होते हुए, सुखपूर्वक विहार करते हुए चम्पा के बाहरी उपनगर में पहुँचे, जहाँ से उन्हें चम्पा में पूर्णभद्र चैत्य में पधारना था ।
थे।
THE SPIRITUAL GRANDEUR
16. (c) He was completely free of the inflow of karmas (asrava) like those acquired through destroying life. He was absolutely selfless (mamtarahit) and devoid of possessions (akinchan). He had destroyed the cyclic flow of rebirths for himself. He was absolutely unspoiled, in other words he had a clean body free of any dirt and a pristine soul free of karmic bondage.
समवसरण अधिकार
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Samavasaran Adhikar
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