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राजमहिषी धारिणी (सौन्दर्य तथा गुण वर्णन)
१२. तस्स णं कोणियस्स रण्णो धारिणी णामं देवी होत्था-सुकुमालपाणिपाया, अहीणपडिपुण्ण-पंचिंदियसरीरा, लक्खण-वंजण-गुणोववेया, माणुम्माणप्पमाणपडिपुण्णसुजायसव्वंगसुंदरंगी, ससिसोमाकारकंतपियदसणा, सुरूवा।
करयल परिमिय पसत्थ तिवली वलियमज्झा, कुंडलुल्लिहिय-गंडलेहा, कोमुइय रयणियर विमलपडिपुण्ण सोमवयणा, सिंगारागारचारुवेसा, संगयगय-हसिय-भणियविहिय-विलास-सललियसंलाव-णिउणजुत्तोवयारकुसला, पासादीया, दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा।
कोणिएणं रण्णा भंभसारपुत्तेण सद्धिं अणुरत्ता, अविरत्ता, इटे सद्द-फरिस-रसरूव-गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरइ।
१२. राजा कोणिक की रानी का नाम धारिणी था। उसके हाथ-पैर सुकोमल थे। शरीर की पाँचों इन्द्रियाँ प्रतिपूर्ण-रचना की दृष्टि से अखण्डित, सम्पूर्ण, अपने-अपने विषयों को ग्रहण करने में सक्षम थीं। वह उत्तम लक्षण-सौभाग्यसूचक हाथ की रेखा आदि, व्यंजनउत्कर्षसूचक, तिल, मस आदि चिह्न तथा गुण-शील, सदाचार आदि गुणों से युक्त थी। मान, उन्मान, प्रमाण अर्थात् शरीर का विस्तार, वजन, ऊँचाई आदि की दृष्टि से वह परिपूर्ण, श्रेष्ठ तथा सर्वांग सुन्दरी थी। उसका आकार चन्द्र के समान सौम्य तथा देखने में कमनीय था। वह परम रूपवती थी।
उसकी देह का मध्य भाग कमर करतल परिमित-मुट्ठी में आ सके इतनी पतली थी। उसका उदर पेट पर पड़ने वाली उत्तम तीन रेखाओं से युक्त था। उसके दोनों कपोल कुण्डलों से उद्दीप्त-सुशोभित थे। उसका मुख शरद पूर्णिमा के चन्द्र के सदृश निर्मल, सौम्य था। उसकी सुन्दर वेशभूषा ऐसी थी, मानो शृंगार रस का घर हो। उसकी गति-चाल, स्मित-मंद हँसी, भणित-बोली, कृति-व्यवहार एवं विलास-दैहिक चेष्टाएँ संगत-समुचित चातुर्यपूर्ण थीं। लालित्यपूर्ण आलाप-संलाप में वह निपुण थी। यथायोग्य लोक व्यवहार में वह कुशल थी। वह मनोरम, दर्शनीय, अभिरूप तथा प्रतिरूप थी।
वह रानी अपने पति भंभसार-(श्रेणिक) के पुत्र कोणिक राजा के प्रति सदा अनुरक्तअनुकूल रहती। क्रोधित होने पर भी कभी विरक्त-प्रतिकूल नहीं होती। पति के साथ शब्द, स्पर्श, रस, रूप, गंध रूप पाँचों इन्द्रियों के मन इच्छित काम-भोग भोगती हुई अपना जीवन सुखपूर्वक बिता रही थी।
समवसरण अधिकार
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Samavasaran Adhikar
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