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चित्र परिचय - १२
मोक्ष सुखों की अनुपमेयता
मोक्ष में आत्मा कैसा सुख अनुभव करती है, इसको समझाने के लिए एक दृष्टान्त दिया गया है। जंगलों में रहने वाला कोई वनवासी पुरुष राजा की मित्रता के कारण एकबार नगर में आया। राजा ने उसे अपने सुन्दर सुसज्जित महलों में ठहराया। महलों की चकाचौंध व सजावट देखकर वह चकित सा रह गया है। फिर राजा उसे अनेक प्रकार के मिष्ठान्न पक्वान्न खिलाता है। स्वादिष्ट भोजन परोसता है और शीतल - सुगन्धित पेय आदि पिलाता है। भोजन के पश्चात् राजमहलों की कोमल शैय्या पर सोना, वहाँ नृत्य - गायन तथा दासियों की सेवा-चाकरी व विविध प्रकार के फलों व मधुर पेयों से स्वागत-सत्कार । इन सब अभूतपूर्व सुखों के अनुभव से वह मन ही मन बड़ा चकित - भ्रमित-सा हो गया। कुछ दिन राजभवन के सुखों का आनन्द लेकर वह अपने वन में चला जाता है। वहाँ के वनवासी स्वजन - परिजन उससे पूछते हैं- तुमने वहाँ क्या खाया, पीया ? कैसा स्वाद था उसका ? कैसा सुख अनुभव किया ? वनवासी उन सब भोगे हुए सुखों का वर्णन करना चाहता है, परन्तु उसके पास न तो शब्द है, न ही उपमा । वह उन अनुभूत सुखों का वर्णन नहीं कर पाता। बस यही कहता है, बहुत अनुपम सुख था। बड़ा ही आनन्द आया ।
Illustration No. 12
इसी प्रकार मोक्ष में आत्मा को जिन अभूतपूर्व सुखों का अनुभव होता है, उनका वर्णन करने के लिए न तो पर्याप्त शब्द हैं न ही कोई यथार्थ उपमा है। इसलिए उन्हें अनुपमेय सुख कहकर बताया जाता है।
INCOMPARABLE BLISS OF LIBERATION
A story is narrated to explain the bliss experienced by a soul in the liberated state.
- सूत्र १८३-१८४
An aborigine living in a jungle comes to a city to visit the king who is a friend. The king took him to his beautiful and decorated palace for stay. The aborigine was dumbfounded to see the grandeur and radiance of the palace. When it was meal time he was served rich and tasty dishes and flavoured cold drinks. After meals he enjoyed music and dance, was served a variety of fruit juices by maids, and enjoyed sleeping in the soft bed. This unprecedented experience of pleasure astonished and intoxicated the aborigine. Enjoying the stay for a few days he returned to the jungle. There his curious friends and relatives asked him what he saw ? What he ate ? How was the taste? How he enjoyed everything? The aborigine wants to express his pleasurable experiences but fails to find words or metaphors to do so. He was unable to express what he had experienced. He just utters-"It was very good. It was excellent. It was fun."
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Same is true for the unearthly spiritual bliss of a Siddha which is unique. There is no suitable allegory or metaphor to convey it. That is why it is called incomparable bliss
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-Sutra 183-184
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