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१८०.
जं देवाणं सोक्खं, सव्वद्धा पिंडियं अनंतगुणं । णय पावइ मुत्तिसुहं णंताहिं वग्गवग्गूहिं ॥१४॥
१८०. तीन काल से गुणा किया हुआ देव-सुख, यदि अनन्त बार वर्गवर्गित किया जाये तो भी वह मोक्ष - सुख के समान नहीं हो सकता ।
180. Let the happiness of the divine beings be multiplied by three (for three periods of time) and then squared infinite times. Still it does not reach the level of the bliss of liberation.
विवेचन - इस सूत्र का भावार्थ इस प्रकार समझा जा सकता है - सर्व देवों का सुख भूत, वर्तमान तथा भविष्य तीनों कालों से गुणा करने पर त्रैकालिक सुख कहा जाता है, कल्पना करें, उस देव - सुख को यदि लोक तथा अलोक के अनन्त आकाश प्रदेशों में एक-एक प्रदेश पर स्थापित करते-करते अनन्त आकाश के समूचे प्रदेश उससे भर जायें तब उस समस्त प्रदेशस्थ सुखों को परस्पर में गुणा करें तो वह अनन्त देव - सुख कहा जाता है। उस अनन्त देव - सुख का अनन्त से वर्ग-वर्ग किया जाये तो भी वह मोक्ष के एक क्षणभर सुख के समान नहीं हो सकता । अर्थात् समस्त देवों का जो त्रैकालिक सुख है, उसे अनन्त गुणा किया जाये तो भी वह सिद्ध भगवान के एक क्षण के सुख की समानता नहीं कर
सकता।
दो समान संख्याओं का परस्पर गुणन करने से जो गुणनफल प्राप्त होता है, उसे 'वर्ग' कहा जाता है । उदाहरणार्थ पाँच का पाँच से गुणन करने पर गुणनफल पच्चीस आता है। पच्चीस पाँच का वर्ग है । वर्ग का वर्ग से गुणन करने पर जो गुणनफल आता है, उसे 'वर्गवर्गित' कहा जाता है। जैसे पच्चीस का पच्चीस से गुणन करने पर छह सौ पच्चीस गुणनफल आता है। यह पाँच का वर्गवर्गित है । गणित के इस नियम के अनुसार देवों के उक्त अनन्त सुख को यदि अनन्त बार वर्गवर्गित किया जाये तो भी वह मुक्तिसुख के समान नहीं हो सकता।
Elaboration-The happiness of divine beings multiplied by three, the number representing three periods of time-past, present and future-is called traikalik sukha or the happiness of three periods of time. Suppose this divine happiness is placed as unit on every space point. This way, when all the infinite number of space-points in lok and alok (occupied and unoccupied space) are filled, the square of this infinite number of units of happiness will be called 'endless divine happiness' (anant dev sukha). Now if this resultant infinite number is squared the same infinite number of times it still does not amount to the momentary bliss of liberation. In other words if the happiness of all the divine beings of past, present and future is added together and squared infinite times still it does not reach the level of the bliss a Siddha experiences for one moment. अम्बड़ परिव्राजक प्रकरण
Story of Ambad Parivrajak
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