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१६९.
जं संठाण तु इहं भवं चयंतस्स चरिमसमयंमि । आसी य पएसघणं, तं संठाणं तर्हि तस्स ॥ ३ ॥
१६९. इस भव में देह का त्याग करते समय अन्तिम समय में सिद्ध का मनुष्य क्षेत्र में जो संस्थान था, उस सिद्ध भगवान का वह संस्थान उस सिद्ध क्षेत्र में नाक, कान, आँख आदि इन्द्रियों के पोले रिक्त स्थान भर जाने के कारण घनीभूत आकार प्रदेशघन रूप होता है । वही आकार वहाँ सिद्ध स्थान में रहता है ।
169. There they have the same compact form that they acquire during the last Samaya in their human body on this land of humans through the process of filling the voids of nose, ear, eyes and other organs with soul-space-points.
१७०.
दीहं वा हस्सं वा, जं चरिमभवे हवेज्ज संठाणं । तत्ततिभागहीणं, सिद्धाणोगाहणा भणिया ॥४॥
१७०. अन्तिम भव में संस्थान चाहे दीर्घ ५०० धनुष का हो या ह्रस्व दो हाथ का हो या मध्यम अवगाहना वाला हो, लम्बा-ठिगना, बड़ा-छोटा जैसा भी आकार होता है, उससे तीसरा भाग कम में सिद्धों की अवगाहना - अवस्थिति होती है।
170. The space occupied by the Siddhas is one-third less than the space occupied by their body during their last birth (500 Dhanush or 2 cubits or in between) irrespective of it being large or small, tall or short or medium.
१७१. तिण्णि सया तेत्तीसा, धणुत्तिभागो य होइ बोद्धव्वो ।
एसा खलु सिद्धाणं, उक्कोसोगाहणा भणिया ॥ ५ ॥
१७१. सिद्धों की उत्कृष्ट अवगाहना तीन सौ तेतीस धनुष तथा एक धनुष का तीसरा भाग (बत्तीस अंगुल ) होती है, सर्वज्ञों ने ऐसा बतलाया है। (जिनका शरीर पाँच सौ धनुषविस्तारमय होता है, उनकी अपेक्षा यह अवगाहना कही है ।)
171. As told by the omniscients, the maximum avagahana (space occupied) of Siddhas is one-third of a Dhanush more than three hundred thirty three Dhanush (333 Dhanush and 32 Anguls). (This is in context of those whose original avagahana was maximum, i.e. 500 Dhanush.)
अम्बइ परिव्राजक प्रकरण
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Story of Ambad Parivrajak
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