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१६६. उस शुभ्र ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी से ऊपर एक योजन पर लोकान्त है। उस योजन के ऊपर के कोस के छठे भाग (३३३ धनुष ३२ अंगुल प्रमाण स्थान पर) पर सिद्ध भगवान, 8 जो सादि-आदियुक्त, अपर्यवसित-अनन्त काल स्थिति में विराजमान जन्म, जरा, मृत्यु आदि 2 अनेक योनियों की वेदना, संसार के भीषण दुःख, पुनः पुनः होने वाले गर्भवास रूप प्रपंचों
से मुक्त हो चुके हैं, अपने शाश्वत भविष्य में सदा सुस्थिर स्वरूप में संस्थित रहते हैं। ____166. One Yojan above that white Ishatpragbhara Prithvi is the edge of the universe (lokant or edge of the occupied space). The Siddhas, who are with a beginning (saadi) and without an end to (aparyavasit); who have gone beyond the agonies of birth, ageing and death in numerous genuses; who are liberated from the terrible miseries of rebirth and the complexity of stay in womb time and en again; who are in their eternal and stable state of future e immortality, are stationed at a level around one-sixth of the last po Kosa (quarter Yojan), which is equivalent to 333 Dhanush and 32 Angul, from this edge of the universe. १६७. कहिं पडिहया सिद्धा, कहिं सिद्धा पडिट्ठिया ?
कहिं बोदि चइत्ता णं, कत्थ गंतूण सिज्झई ? ॥१॥ १६७. भगवन् ! सिद्ध भगवान किस स्थान पर प्रतिहत हैं-कहाँ जाकर आगे जाने से रुक जाते हैं ? वे कहाँ प्रतिष्ठित हैं-इस लोक में शरीर को छोड़कर कहाँ जाकर सिद्ध होते हैं ?
167. Where do the Siddhas halt (pratihat) ? Where are they se stationed ? Where do they abandon their body and where do they go to become Siddhas ? १६८. अलोगे पडिहया सिद्धा, लोयग्गे य पडिट्ठिया।
इह बोंदि चइत्ता णं, तत्थ गंतूण सिज्झई॥२॥ १६८. सिद्ध भगवान लोक के अग्र भाग में प्रतिष्ठित हैं, अतः आगे अलोक में जाने में रुक गये हैं। इस मर्त्यलोक में ही शरीर को छोड़कर वे सिद्ध स्थान में जाकर सिद्ध होते हैं। .. 168. The Siddhas are stationed at the edge of the universe, thust they halt before aloka (unoccupied space). They abandon their parents earthly body on this earth only, and go to the edge of the universe to become Siddhas there.
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औपपातिकसूत्र
(326)
Aupapatik Sutra
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