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YONYADHYAON
गोयमा ! णो इणट्ठे समट्टे ।
१३२. भगवन् ! छद्मस्थ - सराग अवस्था में रहा मनुष्य क्या उन निर्जरा पुद्गलों के वर्ण रूप से वर्ण को, गन्ध रूप से गन्ध को, रस रूप से रस को तथा स्पर्श रूप से स्पर्श को जानता है ? देखता है ?
गौतम ! ऐसा सम्भव नहीं है ।
CAPACITY OF A CHHADMASTH TO EXPERIENCE
132. Bhante ! Is it possible for a chhadmasth (one who is short of omniscience due to residual karmic bondage) to experience and know the appearance, smell, taste and touch of the matter particles so shed and scattered in the form of appearance, smell, taste and touch ?
No, Gautam ! That is not possible.
१३३ . से केणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ छउमत्थे णं मणुस्से तेसिं णिज्जरापोग्गलाणं णो किंचि वण्णं वण्णं जाव (गंधेणं गंध, रसेणं रसं, फासेणं फासं) जाणइ, पासइ ?
१३३. भगवन् ! यह किस अभिप्राय से कहा जाता है कि छद्मस्थ मनुष्य उन खिरे हुए पुद्गलों के वर्ण रूप से वर्ण को, गन्ध रूप से गन्ध को, रस रूप से रस को तथा स्पर्श रूप से स्पर्श को जरा भी नहीं जानता, नहीं देखता ?
133. Bhante ! For what reason it is said that it is not possible for a chhadmasth (one who is short of omniscience due to residual karmic bondage) to experience and know the appearance, smell, taste and touch of the matter particles so shed and scattered in the form of appearance, smell, taste and touch ?
१३४. गोयमा ! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्धंतराए, सव्वखुड्डाए, बट्टे, तेलापूयसंठाणसंठिए बट्टे, रहचक्कवालसंटाणसंटिए एक्कं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसयसहस्साइं सोलससहस्साइं दोण्णि य सत्तावीसे जोयणसए तिण्णि य कोसे अट्ठावीसं च धणुसयं तेरस य अंगुलाई अद्धंगुलियं च किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते ।
१३४. गौतम ! यह जम्बूद्वीप नामक द्वीप सभी द्वीपों तथा समुद्रों के बिलकुल बीच में स्थित है। यह आकार में सबसे छोटा है, गोल है । तेल में पके हुए पूए के समान गोल है ।
अम्बड़ परिव्राजक प्रकरण
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Story of Ambad Parivrajak
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