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ऊसियफलिहा, अवंगुयदुवारा, चियत्तंतेउरपरघरप्पवेसा चउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्मं अणुपालेत्ता समणे निग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम
साइमेणं, वत्थपडिग्गह-कंबलपायपुच्छणेणं, ओसहभेसज्जेणं पडिहारएण य * पीढफलगसेज्जासंथारएणं पडिला माणा विहरंति।
विहरित्ता भत्तं पच्चक्खंति ते बहूई भत्ताइं अणसणाए छेदेति, छेदित्ता आलोइयपडिक्कंता, समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववत्तारो भवंति। तहिं तेसिं गई, बावीसं सागरोवमाई ठिई, आराहगा, सेसं तहेव।।
१२३. इसी प्रकार ऐसे श्रमणोपासक होते हैं, जो जीव, अजीव आदि पदार्थों के यथार्थ कि स्वरूप के ज्ञाता होते हैं। जिन्होंने पुण्य और पाप का भेद अच्छी प्रकार जाना है। आस्रव,
संवर, निर्जरा, क्रिया, अधिकरण, बन्ध एवं मोक्ष के विषय में हेय-उपादेय के ज्ञान से युक्त हैं। जो धर्म-साधना में किसी दूसरे की सहायता की अपेक्षा नहीं रखते हैं, जिन्हें देव, नाग, से सुपर्ण, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, गरुड़, गन्धर्व, महोरग आदि देव निर्ग्रन्थ-प्रवचन से १ विचलित नहीं कर सकते, जो निर्ग्रन्थ-प्रवचन में शंकारहित, अन्य भौतिक आकांक्षाओं से * रहित, विचिकित्सा-संशयरहित, धर्म के यथार्थ तत्त्व को प्राप्त किये हुए, जिज्ञासा या प्रश्न * द्वारा उसे स्थिर किये हुए, तत्त्व रहस्य को पूर्ण रूप में ग्रहण किये हुए, निश्चित रूप में
आत्मसात् किये हुए हैं, जिनकी अस्थि और मज्जा तक धर्म के प्रति प्रेम तथा अनुराग से रँगे हैं। जो दूसरों को इस प्रकार बताते हैं, अथवा जिनका यह निश्चित विश्वास है कि “यह । निर्ग्रन्थ-प्रवचन ही सारभूत है, इसके सिवाय अन्य सब सारहीन-व्यर्थ हैं।
(व्यवहार में वे इतने उदार और विश्वसनीय हैं कि-) उच्छ्रित-परिघ-कभी जिनके घर 2 के किवाड़ों के आगल नहीं लगी रहती, अथवा जिनका हृदय स्फटिक के समान निर्मल है। 21 अपावृतद्वार-भिक्षुक, अतिथि आदि खाली न लौट जायें, इस दृष्टि से जिनके घर के दरवाजे
सदा खुले रहते हों त्यक्तान्तःपुर गृहद्वार प्रवेश-राजा के अन्तःपुर अथवा घर के भीतरी भाग * में जिनका प्रवेश विश्वसनीय एवं प्रीतिकारक है, साधना की दृष्टि से चतुर्दशी, अष्टमी,
अमावस्या एवं पूर्णिमा को परिपूर्ण पौषध का सम्यक् अनुपालन करते हुए, श्रमण-निर्ग्रन्थों को प्रासुक-अचित्त, एषणीय-निर्दोष अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, आहार, वस्त्र, पात्र, कम्बल, पाद-प्रोञ्छन, औषध-जड़ी-बूटी आदि वनौषधि, भेषज-तैयार औषधि, दवा, प्रातिहारिक वस्तु (-लेकर वापस लौटा देने योग्य वस्तु), बाजोट, ठहरने का स्थान, बिछाने के लिए घास आदि द्वारा प्रतिलाभित करते हुए धर्म का पालन करते हैं।
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अम्बड़ परिव्राजक प्रकरण
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Story of Ambad Parivrajak
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