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अल्पारंभी आदि मनुष्यों का उपपात
१२२. से जे इमे गामागर जाव सण्णिवेसेसे मणुया भवंति, तं जहा - अप्पारंभा, अप्पपरिग्गहा, धम्मिया, धम्माणुया, धम्मिट्ठा, धम्मक्खाई, धम्मप्पलोई, धम्मपलज्जणा, धम्मसमुदायारा, धम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा, सुसीला, सुव्वया, सुप्पडियाणंदा ।
साहूहिं गच्चाओ पाणाइवायाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया एवं जाव एगच्चाओ कोहाओ, माणाओ, लोहाओ, पेज्जाओ, दोसाओ, कलहाओ, अब्भक्खाणाओ, पेसुण्णओ, परपरिवायाओ, अरइरइओ, मायामोसाओ, मिच्छादंसणसल्लाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया ।
एगच्चाओ आरंभसमारंभाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया । एगच्चाओ करणकारावणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया । एगच्चाओ पयणपयावणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ पयणपयावणाओ अपडिविरया । एगच्चाओ कोट्टणपिट्टणतज्जणतालणवहबंधपरिकिलेसाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया । एगच्चाओ न्हाणमद्दणवण्णगविलेवणसद्दफरिसरसरूवगंधमल्लालंकाराओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया । जेयावण्णे तहप्पगारा सावज्जजोगोवहिया कम्र्म्मता परपाणपरियावणकरा कज्जंति, तओ वि एगच्चाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया ।
१२२. ग्राम, आकर, सन्निवेश आदि में जो ये मनुष्य होते हैं, जैसे- अल्पारंभीआवश्यक थोड़ी हिंसा से जीवन चलाने वाले, अल्पपरिग्रही सीमित धन, धान्य आदि में सन्तोष रखने वाले, धार्मिक - श्रुत चारित्ररूप धर्म का आचरण करने वाले, धर्मानुग - श्रुत धर्म या आगमानुमोदित धर्म का अनुसरण करने वाले, धर्मिष्ठ, धर्मप्रिय-धर्म में प्रीति रखने वाले, धर्माख्यायी - धर्म का आख्यान करने वाले, भव्य प्राणियों को धर्म बताने वाले अथवा धर्मख्याति-धर्म में ख्याति प्राप्त करने वाले, धर्मप्रलोकी - धर्म को उपादेय रूप में देखने वाले, धर्मप्ररंजन-धर्म में विशेष रूप से अनुरंजित रहने वाले, धर्मसमुदाचार-धर्म का सम्यक् आचरण करने वाले, धर्मपूर्वक अपनी जीविका चलाने वाले, सुशील - उत्तम शील, आचारयुक्त, सुव्रत - श्रेष्ठ व्रतयुक्त, सुप्रत्यानन्द - जिनका चित्त सदा धर्म में आनन्दयुक्त रहता हो ।
वे साधुओं के पास - साधुओं की साक्षी से एगच्चाओ - आंशिक रूप में, या स्थूल रूप में जीवनभर के लिए हिंसा से निवृत्त होते हैं, किन्तु सूक्ष्म हिंसा से जो निवृत्त नहीं होते, इसी
औपपातिकसूत्र
Aupapatik Sutra
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