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सयसहरसपत्ते इवा, पंके जाये, जले संवुड्डे गोवलिप्पइ पंकरएणं गोवलिप्पइ जलरएणं, एवामेव दढपणे वि दारए कामेहिं जाये, भोगेहिं संबुड्ढे गोवलिप्पिहिति कामरएणं, लिपिहिति भोगरएणं, णोवलिप्पिहिति मित्तणाइ - णियग - सयण - संबंधिपरिजणेणं ।
११२. जिस प्रकार उत्पल, पद्म, कुमुद, नलिन, सुभग, सुगन्ध, पुण्डरीक, महापुण्डरीक, शतपत्र, सहस्रपत्र, शतसहस्रपत्र आदि विविध जाति के कमल कीचड़ में उत्पन्न होते हैं, जल में बढ़ते हैं परन्तु पंक - रज - जल - कीचड़ से जल-रज जल-कणों से लिप्त नहीं होते, अर्थात् निर्लेप स्वच्छ रहते हैं, उसी प्रकार दृढ़प्रतिज्ञकुमार जो काममय जगत् में उत्पन्न होगा, भोगमय जगत् में वृद्धि प्राप्त होगा - पलेगा - बढ़ेगा, किन्तु काम-रज से - शब्द एवं रूप सम्बन्धी भोग्य पदार्थों से, भोग-रज से -गंध-रस तथा स्पर्श सम्बन्धी भोग्य पदार्थों की आसक्ति से लिप्त नहीं होगा, मित्र - ज्ञाति - सजातीय, निजक- भाई, बहन आदि पितृपक्ष के पारिवारिक, स्वजन - नाना, मामा आदि मातृपक्ष के पारिवारिक तथा अन्यान्य सम्बन्धी, परिजन - सेवकवृन्द आदि के मोह बन्धन में नहीं फँसेगा ।
112. Different variety of lotuses including utpal, padma, kumud, nalin, subhag, sugandh, pundareek, mahapundarek, shatapatra, sahasrapatra, shatasahasrapatra sprout in mud and grow in water but still remain unblemished by fine particles of mud and droplets of water. In the same way, Dridhapratijna Kumar, born in the world of desires and brought up in the world of sensual pleasures, will remain unaffected by attachment of objects of desire having attributes of sound and form (kama-raj) and objects of sensual pleasures having attributes of smell, taste and touch (bhog-raj). He will also not be trapped in the bonds of love for friends, kinfolk (jnati ), paternal (nijak) and maternal (svajan) relatives and servants (parijan).
११३. से णं तहारूवाणं थेराणं अंतिए केवलं बोहिं बुज्झिहिति, बुज्झित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइहिति ।
११३. वह तथारूप-वीतराग की आज्ञा के अनुसार सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन, सम्यक् चारित्र से युक्त स्थविरों - श्रमणों के पास केवलबोधि-विशुद्ध सम्यक् दर्शन प्राप्त करेगा, गृहवास का परित्याग कर वह अनगारधर्म में दीक्षित होगा ।
113. He will acquire pure and right perception / faith from sthavirs (senior ascetics) who follow the path of right knowledge, perception/ faith and conduct as shown by the Vitarag, and then get initiated in the order of the homeless ascetics, renouncing his household.
औपपातिकसूत्र
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Aupapatik Sutra
SONOROKORONKRKA
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