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After teaching, imparting practical training and making skillful in all aforesaid seventy two arts or subjects, the teacher will send back the boy to his parents. (There is a mention of seventy two arts in Rayapaseniya Sutra also at p. 282 with some variations in the names.)
१०८. तए णं तस्स दढपइण्णस्स दारगस्स अम्मापियरो तं कलायरियं विउलेणं। असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थगंध-मल्लालंकारेण य सक्कारेहिंति, सक्कारेत्ता। सम्माणेहिंति, सम्माणेत्ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलइस्संति, दलइत्ता पडिविसज्जेहिंति।।
१०८. तब उस दृढ़प्रतिज्ञकुमार के माता-पिता कलाचार्य का प्रचुर अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, वस्त्र, गन्ध (सुगन्धित पदार्थ), माला तथा अलंकार आदि द्वारा सत्कार करेंगे, सम्मान करेंगे। सत्कार-सम्मान कर उन्हें जीविका के योग्य-जिससे समुचित रूप में जीवननिर्वाह होता रहे, ऐसा प्रीतिदान-पुरस्कार देंगे। पुरस्कार देकर विदा करेंगे। __108. Then the parents of Dridhapratijna Kumar will greet and honour the teacher with ample gifts like staple food, liquids, general food and savoury food (ashan, paan, khadya, svadya), clothes, perfumes, garlands and ornaments. After that they will give him endowments enough for his comfortable sustenance and bid him farewell.
१०९. तए णं से दढपइण्णे दारए बावत्तरिकलापंडिए, नवंगसुत्तपडिबोहिए, अट्ठारसदेसी-भासाविसारए, गीयरई, गंधव्वणट्टकुसले, हयजोही, गयजोही, रहजोही, बाहुजोही, बाहुप्पमद्दी, वियालचारी, साहसिए, अलंभोगसमत्थे यावि भविस्सइ।
१०९. इसके बाद यह दृढ़प्रतिज्ञ बालक बहत्तर कलाओं में पण्डित होने पर, उसके नौ अंगों (दो कान, दो नेत्र, दो घ्राण, एक जिह्वा, एक त्वचा तथा एक मन-इन नव अंगों) की चेतना जाग जायेगी। वह यौवनावस्था को प्राप्त होगा तथा वह अठारह देशी भाषाओं-लोक भाषाओं में निपुण बनेगा, गीतप्रिय, गान्धर्व-नाट्य-कुशल-संगीत-विद्या, नृत्य-कला आदि में प्रवीण, अश्वयुद्ध, गजयुद्ध, रथयुद्ध, बाहुयुद्ध इन सबमें दक्षता प्राप्त करेगा, विकालचारी होगा। निर्भीकता के कारण रात में भी घूमने-फिरने में निःशंक तथा साहसिक-प्रत्येक कार्य में साहसी दृढ़प्रतिज्ञ बनेगा। इस प्रकार सांगोपांग विकसित संवर्द्धित होकर सांसारिक सुखों का उपभोग करने में सर्वथा समर्थ हो जायेगा।
109. Thereafter when Dridhapratijna becomes well versed in * these seventy two arts; his awareness and consciousness of nine sense organs of his body (two ears, two eyes, two nostrils, one tongue, one skin or sense of touch and one mind) attains perfection
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औपपातिकसूत्र
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Aupapatik Sutra
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