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________________ (३१) आभरणविधि - आभूषण बनाने तथा धारण करने की कला, (३२) तरुणीप्रतिकर्मयुवतियों को सजाने, शृंगार करने की कला, (३३) स्त्रीलक्षण - पद्मिनी, हस्तिनी, शंखिनी व चित्रिणी स्त्रियों के लक्षणों का ज्ञान, (३४) पुरुषलक्षण - उत्तम, मध्यम, अधम आदि पुरुषों के लक्षणों का ज्ञान, अथवा शश आदि पुरुष - भेदों का ज्ञान, (३५) हयलक्षण - अश्व की जातियों, लक्षणों आदि का ज्ञान, (३६) गजलक्षण - हाथियों के शुभ, अशुभ आदि लक्षणों की जानकारी, (३७) गोलक्षण - गाय, बैल के लक्षणों का ज्ञान, (३८) कुक्कुटलक्षण - मुर्गे के लक्षणों का ज्ञान, (३९) चक्रलक्षण, (४०) छत्रलक्षण, (४१) चर्मलक्षण - ढाल आदि चमड़े से बनी विशिष्ट वस्तुओं के लक्षणों का ज्ञान, (४२) दण्डलक्षण, (४३) असिलक्षण - तलवार की श्रेष्ठता, अश्रेष्ठता का ज्ञान, (४४) मणिलक्षण - रत्नपरीक्षा, (४५) काकणीलक्षण काकिणी नामक रत्न की पहचान, (४६) वास्तु - विद्या - भवन - 1 न-निर्माण की कला, (४७) स्कन्धावारमान- छावनी लगाना, मोर्चा लगाना आदि की कला, (४८) नगर निर्माण आदि की कला अथवा नगर - रचना की जानकारी, (४९) वास्तुनिवेशन - भवनों के उपयोग आदि के सम्बन्ध में विशेष ज्ञान, (५०) व्यूह - आकार - विशेष में सेना स्थापित करने या माने की कला, प्रतिव्यूह - शत्रु द्वारा रचे गये व्यूह के मुकाबले तत्प्रतिरोधक दूसरे व्यूह की रचना की कला, (५१) चार - चन्द्र, सूर्य, राहु, केतु आदि ग्रहों की गति का ज्ञान प्रतिचारइष्टजनक, अनिष्टजनक शान्तिकर्म का ज्ञान, (५२) चक्रव्यूह - चक्र, रथ के पहिये के आकार में सेना को स्थापित - सज्जित करना, (५३) गरुड़व्यूह के आकार में सेना की रचना करना, (५४) शकटव्यूह - गाड़ी के आकार में सेना को स्थापित करना, (५५) युद्ध की कला, (५६) नियुद्ध - पैदल युद्ध करने की कला, (५७) युद्धातियुद्ध - तलवार, भाला आदि फेंककर युद्ध करने की कला, (५८) मुष्टियुद्ध - मुक्कों से लड़ने में निपुणता, (५९) बाहुयुद्ध - भुजाओं द्वारा लड़ने की कला, (६०) लतायुद्ध - जैसे बेल वृक्ष पर चढ़कर उसे जड़ से लेकर शिखर तक आवेष्टित कर लेती है, उसी प्रकार जहाँ योद्धा प्रतियोद्धा के शरीर को कसकर भूमि पर गिरा देता है और उस पर चढ़ बैठता है, वह कला, (६१) इषुशस्त्र- नागबाण आदि के प्रयोग का ज्ञान, क्षुर - प्रवाह - छुरा आदि फेंककर वार करने का ज्ञान, (६२) धनुर्वेद - धनुर्विद्या, हिरण्यपाक - रजतसिद्धि, (६४) सुवर्णपाक-सुवर्णसिद्धि, (६५) वृत्तखेल - रस्सी आदि पर चलकर खेल दिखाने की कला, (६६) सूत्रखेल-सूत द्वारा खेल दिखाने, कच्चे सूत द्वारा करिश्मे बतलाने की कला, (६७) नालिकाखेल - नालिका में पास या कौड़ियाँ डालकर गिराना - जुआ खेलने की एक विशेष प्रक्रिया की जानकारी, (६८) पत्रच्छेद्य - एक सौ आठ पत्तों में यथेष्ट संख्या के पत्तों को एक बार में छेदने का हस्त - लाघव, (६९) कटच्छेद्य - चटाई की तरह क्रमशः फैलाये हुए (६३) औपपातिकसूत्र Aupapatik Sutra Jain Education International (274) Z9.99 For Private & Personal Use Only ९.१९.१९.१९.१.९.१.९.१.९.१.१.११.१९.१.१.१९.१.९.१.५.१.५.१.५.१.१.११.१.९०१.०४.२०१२०१९०१ DES www.jainelibrary.org
SR No.002910
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2003
Total Pages440
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_aupapatik
File Size16 MB
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