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________________ खंधारमाणं, नगरमाणं, वत्थुनिवेसणं, बूहं पडिवूहं चारं पडिचारं चक्कवूहं, गरुलवूहं, सगडवूहं, जुद्धं, निजुद्धं, जुद्धाइजुद्धं, मुट्ठिजुद्धं, बाहूजुद्धं, लयाजुद्धं, इसत्थं - छरुप्पवाहं, धणुव्वेयं, हिरण्णपागं, सुवण्णपागं, वट्टखेडं, सुत्ताखेडं, णालियाखेडं, पत्तच्छेज्जं, कडगच्छेज्जं, सज्जीवं, निज्जीवं, सउणरुयमिति । बावत्तरिकलाओ सेहावित्ता, सिक्खावेत्ता अम्मापिईणं उवणेहिति । १०७. तब कलाचार्य बालक दृढ़प्रतिज्ञ को लेख ( अक्षर ज्ञान ) एवं गणित ( अंक ज्ञान ) से प्रारम्भ कर पक्षिशब्द ज्ञान पर्यन्त बहत्तर कलाएँ सूत्र रूप में - सैद्धान्तिक दृष्टि से, अर्थ रूप में-व्याख्यात्मक दृष्टि से, करण रूप में - प्रयोगात्मक दृष्टि से सधायेंगे, अभ्यास करायेंगे। वे बहत्तर कलाएँ इस प्रकार हैं (१) लेख - लेखन - अक्षरविन्यास - कला, (२) गणित, (३) रूप - भित्ति, पाषाण, वस्त्र, रजत, स्वर्ण आदि पर विविध प्रकार का चित्रांकन, (४) नाट्य-अभिनय, नाच, (५) गीत - गायन-संगीत-विद्या, (६) वाद्य - वीणा, दुन्दुभि, ढोल आदि स्वर एवं ताल सम्बन्धी वा (साज) बजाने की कला, (७) स्वरगत - निषाद तथा पंचम-आदि सात स्वरों का परिज्ञान, (८) पुष्करगत-मृदंग वादन की विशेष कला, (९) समताल-ताल का ज्ञान, (१०) द्यूत - आ खेलने की कला, (११) जनवाद - लोगों के साथ वार्त्तालाप अथवा वाद-विवाद करने की कला, (१२) पाशक- पासा फेंकने की विशिष्ट कला, (१३) अष्टापद - चौपड़, शतरंज जैसे बिसात के खेलों की कला, (१४) पुरः काव्य- आशुकविता अथवा पौरस्कृत्य - नगर की रक्षा, व्यवस्था आदि का परिज्ञान, (१५) उदक - मृत्तिका - जल तथा मिट्टी के मेल से बर्तन आदि निर्माण की कला, (१६) अन्नविधि - अन्न उत्पन्न करने अथवा भोजन पकाने की कला, (१७) पानविधि - जल प्रबन्धन तथा पेय पदार्थ बनाने तथा प्रयोग आदि का परिज्ञान, (१८) वस्त्रविधि - वस्त्र सम्बन्धी ज्ञान, (१९) विलेपनविधि - शरीर पर चन्दन, कुंकुम आदि सुगन्धित द्रव्यों के लेप का, मण्डन का ज्ञान, (२०) शयनविधि - शय्या आदि बनाने, सजाने की कला, (२१) आर्या- आर्या आदि मात्रिक छन्द रचने की कला, (२२) प्रहेलिका- पहेलियाँ आदि रचने की कला, (२३) मागधिका - मगध देश की भाषा - मागधी - प्राकृत में काव्यरचना, (२४) गाथा-प्राकृत भाषा में गाथा रचने की कला, (२५) गीतिका - गेय काव्य की रचना, (२६) श्लोक - अनुष्टप् आदि छन्दों में रचना, (२७) हिरण्ययुक्ति - चाँदी बनाने की कला, (२८) सुवर्णयुक्ति - सोना बनाने की कला, (२९) गन्धयुक्ति - सुगन्धित पदार्थ तैयार करने की विधि का ज्ञान, (३०) चूर्णयुक्ति - विभिन्न औषधियों द्वारा तान्त्रिक विधि से निर्मित चूर्ण डालकर दूसरे को वश में करना, स्वयं अन्तर्धान हो जाना आदि (विद्याओं) का ज्ञान, अम्बड़ परिव्राजक प्रकरण Jain Education International (273) For Private & Personal Use Only Story of Ambad Parivrajak www.jainelibrary.org
SR No.002910
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2003
Total Pages440
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_aupapatik
File Size16 MB
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