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________________ E by Agam Prakashan Samiti, Beawar has followed the other view. In this edition we have also used the second interpretation. * ९५. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए जाव * परिग्गहे णवरं सब्वे मेहुणे पच्चक्खाए जावज्जीवाए। ९५. अम्बड़ परिव्राजक ने जीवनभर के लिए स्थूल प्राणातिपात-स्थूल हिंसा यावत् स्थूल मृषावाद आदि परिग्रह तथा समस्त प्रकार के अब्रह्मचर्य का प्रत्याख्यान किया है (सम्पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया)। ____95. Ambad Parivrajak has renounced general (sthool) violence... and so on up to... possession. Besides this he has renounced for life all sexual activity (the vow of absolute abstinence). ९६. अम्मडस्स णं परिवायगस्स णो कप्पइ अक्खसोयप्पमाणमेत्तंपि जलं सयराहं उत्तरित्तए, णण्णत्थ अद्धाणगमणेणं। अम्मडस्स णं णो कप्पइ सगडं वा एवं तं चेव भाणियव्वं णण्णत्थ एगाए गंगामट्टियाए। ____ अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ आहाकम्मिए वा, उद्देसिए वा, मीसजाए इ वा, * अज्झोयरए इ वा, पूइकम्मे इ वा, कीयगडे इ वा, पामिच्चे इ वा, अणिसिटे इ वा, अभिहडे इ वा, ठइत्तए वा, रइत्तए वा, कंतारभत्ते इ वा, दुभिक्खभत्ते इ वा, गिलाणभत्ते इवा, वद्दलियाभत्ते इ वा, पाहुणगभत्ते इ वा, भोत्तए वा, पाइत्तए वा। ___ अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ मूलभोयणे वा जाव (कंदभोयणे, फलभोयणे, र हरियभोयणे, पत्तभोयणे) बीयभोयणे वा भोत्तए वा पाइत्तए वा। * ९६. इस अम्बड़ परिव्राजक को मार्गगमन करते समय अकस्मात् गाड़ी की धुरी-प्रमाण जल आ जावे तो भी उतरना नहीं कल्पता। परन्तु विहार करते हुए अन्य रास्ता नहीं हो तो * बात अलग है। * अम्बड़ परिव्राजक को गाड़ी (पालकी) आदि पर सवार होना नहीं कल्पता, (पूर्व * वर्णनवत्) केवल गंगा की मिट्टी का लेप करना कल्पता है। ___ अम्बड़ परिव्राजक को आधाकर्मिक तथा औद्देशिक-(हिंसा करके साधु के उद्देश्य से बना भोजन), मिश्र जात-(साधु तथा गृहस्थ दोनों के उद्देश्य से तैयार किया गया भोजन), अध्यवपूर-(साधु के लिए अधिक मात्रा में बनाया हुआ आहार), पूर्तिकर्म-(आधाकर्मी आहार के अंश से मिला हुआ आहार), क्रीतकृत-(खरीदकर लिया गया), प्रामित्य (उधार औपपातिकसूत्र (264) Aupapatik Sutra OSH Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.002910
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2003
Total Pages440
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_aupapatik
File Size16 MB
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