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Worth a special mention is that the following three adjectives are not applicable to him-(1) Uchchhrit phaliha-in whose house door bolts are never used. (2) Apavritadvar-in whose house doors are never closed to anyone. (3) Tyaktantahpura grihadvar pravesh- .. whose entry to the inner (ladies) quarters of any house never offends anyone.
विवेचन-इस सूत्र में गत वर्णन से पता चलता है कि अम्बड़ आनन्द, कामदेव आदि जैसा ही अत्यन्त दृढ़ श्रद्धालु तत्त्व का जानकार और निर्ग्रन्थ प्रवचन में पूर्ण अविचल आस्था रखने वाला श्रमणोपासक था। वह अमावस्या, पूर्णिमा आदि पर्व तिथियों पर परिपूर्ण पौषध करता था और श्रमण निर्ग्रन्थों को एषणीय आहार आदि का यथोचित दान भी करता था। किन्तु वह स्वयं भिक्षु था, उसका अपना कोई घर नहीं था, अतः अन्त के तीन विशेषण जो श्रावकों के विषय में कहे जाते हैं, वे उस पर लागू नहीं होते। इन तीन विशेषणों के अर्थ सम्बन्धी दो परम्पराओं का वर्णन टीकाकार अभयदेवसूरि ने किया हैएक प्राचीन वृद्ध परम्परा, जिसके अनुसार ये तीनों वाक्य अम्बड़ की विशेषता के सूचक हैं-(१) उच्छ्रित फलिह-स्फटिक राशि के समान निर्मल हृदय, (२) अपावृतद्वार-अम्बड़ के लिए कभी किसी घर का दरवाजा बन्द नहीं रहता था, (३) त्यक्तान्तःपुर गृहद्वार प्रवेश-वह इतना विश्वस्त और पवित्र आचार वाला था कि उसका प्रवेश किसी भी घर के भीतर वर्जनीय या शंकास्पद नहीं था। आचार्य श्री घासीलाल जी म. ने अपनी टीका में वृद्ध परम्परा के इसी अर्थ को मान्य किया है, जबकि आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर द्वारा प्रकाशित सूत्र में टीकाकार द्वारा प्रस्तुत द्वितीय अर्थ स्वीकार किया गया है, जो अनुवाद में हमने दिया है।
Elaboration—The description in this aphorism informs that like Anand and Kamadev, Ambad Parivrajak was also a highly and deeply devoted Shramanopasak having profound knowledge of fundamentals and one unwavering faith in the Nirgranth sermon. He observed the complete paushadh (partial ascetic vow) on fifteenth and other auspicious days of every fortnight and offered suitable food and other gifts to ascetics. However, as he himself was a homeless mendicant the three adjectives generally used for householders are not applicable in his case. Abhayadev Suri, the commentator (Tika) mentions about two traditions regarding the meaning of these adjectives—The ancient Vriddha tradition interprets these three terms as special qualities of Ambad Parivrajak(1) Uchchhrit phaliha-having a heart clean and clear as a heap of crystals. (2) Apavritadvar-for Ambad Parivrajak no door was ever closed. (3) Tyaktantahpura grihadvar pravesh-he was so reliable that his entry into any house never caused any apprehension or offended anyone. Acharya Ghasilal ji M. has followed this Vriddha tradition interpretation in his commentary (Tika), whereas the edition published
अम्बड़ परिव्राजक प्रकरण
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Story of Ambad Parivrajak
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