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जावज्जीवाए, थूलए परिग्गहे पच्चक्खाए जावज्जीवाए, इयाणिं अम्हे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामो जावज्जीवाए एवं जाव सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामो जावज्जीवाए ।
सव्वं कोहं, माणं, मायं, लोहं, पेज्जं, दोसं, कलहं, अब्भक्खाणं, पेसुण्णं, परपरिवार्य, अरइ - रई, माया - मोसं, मिच्छादंसणसल्लं, अकरणिज्जं जोगं पच्चक्खामो जावज्जीवाए, सव्वं असणं, पाणं, खाइमं, साइमं चउव्विहं पि आहारं पच्चक्खामो जावज्जीवाए ।
जंपि य इमं सरीरं, कंतं, पियं, मणुण्णं, मणामं, पेज्जं, थेज्जं, वेसासियं, संमयं, बहुमयं, अणुमयं, भंडकरंडगसमाणं, मा णं सीयं, मा णं उण्हं, मा र्ण खुहा, मा णं पिवासा, माणं वाला, मा णं चोरा, मा णं दंसा, मा णं मसगा, मा णं वाइय-पित्तियसंनिवाइय विविहा रोगायंका, परीसहोवसग्गा फुसंतु त्ति कट्टु एयंपि णं चरमेहिं ऊसासणीसासेहिं वोसिरामि ।"
त्ति कट्टु संलेहणा - झूसणाझूसिया भत्तपाणपडियाइक्खिया पाओवगया कालं अणवकखमाणा विहरंति ।
८७. " अरिहंतों को यावत् मुक्तिरूपी स्थान को प्राप्त सिद्ध भगवन्तों को - नमस्कार हो । उन श्रमण भगवान महावीर को नमस्कार हो, जो सिद्ध अवस्था प्राप्त करने के लिए समुद्यत हैं।
हमारे धर्माचार्य, धर्मोपदेशक अम्बड़ परिव्राजक को नमस्कार हो ।
पहले हमने अम्बड़ परिव्राजक के पास, उनकी साक्षी से स्थूल प्राणातिपात - मृषावादचोरी, सब प्रकार के अब्रह्मचर्य तथा स्थूल परिग्रह का जीवन - पर्यन्त के लिए प्रत्याख्यान किया था। इस समय हम पुनः भगवान महावीर की साक्षी से सब प्रकार की (स्थूल एवं सूक्ष्म) हिंसा ( सब प्रकार के असत्य, सब प्रकार की चोरी, सब प्रकार के अब्रह्मचर्य तथा सब प्रकार के परिग्रह) का जीवनभर के लिए परित्याग करते हैं ।
इसी प्रकार सब प्रकार के क्रोध का, मान का, माया का, लोभ का, समस्त प्रेम (माया व लोभजनित रागभाव), समस्त द्वेष भाव का, कलह का, अभ्याख्यान का ( मिथ्या दोषारोपण ), पैशुन्य का ( चुगली तथा पीठ पीछे किसी के होते - अनहोते दोषों का प्रकटीकरण), परपरिवाद ( निन्दा) का, रति- ( मोहनीय कर्म के उदय के परिणामस्वरूप असंयम में रुचि रखना) अरति का (संयम में अरुचि रखना), मायामृषा का - ( - ( माया या छलपूर्वक झूठ
अम्बड़ परिव्राजक प्रकरण
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Story of Ambad Parivrajak
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