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| चित्र परिचय-८ |
Illustration No.8
अम्बड़ के सात सौ शिष्यों का संथारा अम्बड़ परिव्राजक के सात सौ शिष्य ग्रीष्म ऋतु के ज्येष्ठ मास में गंगा महानदी के किनारे-किनारे चलकर पुरिमतालपुर जा रहे हैं। मार्ग में एक लम्बी अटवी आ गयी। दूर-दूर तक कोई गाँव नहीं था। किसी मनुष्य का मुँह नहीं दीख रहा था। साथ में जो पानी था वह भी समाप्त हो गया। धूप के कारण कण्ठ सूखने लगे, प्यास से व्याकुलता बढ़ी, परन्तु नियम के अनुसार किसी के दिये बिना वे नदी आदि का पानी नहीं ले सकते थे। विषम परिस्थिति देखकर सभी मिलकर विचार करते हैं, अब क्या करें ? संन्यासी इधर-उधर दूर तक देखते हैं, परन्तु कोई भी मनुष्य आता-जाता दिखाई नहीं देता।
अन्त में सबने मिलकर निश्चय किया, हमें शरीर छोड़ देना स्वीकार है, परन्तु अदत्त जल ग्रहण नहीं करेंगे। निश्चय लरके सबने अपने कमण्डलु, दण्ड, पात्र, छत्र आदि गंगा नदी के किनारे सूखे स्थान पर रख दिये और स्वयं गंगा किनारे की बालू का संस्तारक बनाकर उस पर शरीर एवं कषाय भावों का परित्याग करते हुए पद्मासन से स्थित हो जाते हैं। सभी ने पहले अपने आराध्य अरिहंत भगवान महावीर को नमस्कार किया। फिर अपने धर्माचार्य अम्बड़ परिव्राजक की वन्दना की। अपने गुरु के पास ग्रहीत पाँच अणुव्रतों की आलोचना कर आहार-पानी आदि चारों आहार का सर्वथा त्याग कर शरीर को स्थिर कर शान्त भाव से अवस्थित हो गये।
-सूत्र ८२-८८
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SANTHARA BY SEVEN HUNDRED
DISCIPLES OF AMBAD In the Jyeshtha month of the summer season Ambad Parivrajak's seven hundred disciples walked along the banks of the Ganges towards Purimtaal city. On there way they arrived in a dense forest. There was no village far or near that forlorn place. No human was visible there. They had consumed all the supply of water they had brought along. Their throats were parched due to sun. They suffered agonizing thirst. Their codes proscribed them to take water from a river or any other source without being given. In this grave predicament they deliberated on what to do? The Sanyasis started searching in all directions but failed to find any water-donor.
In the end they jointly decided that abandoning the earthly body was preferable to taking water without being given.
After resolving thus they abandoned their equipment including gourd-bowl, triple-staff, umbrella etc. at a dry spot on the river bank. Then they prepared beds with the sand and sat down in lotus posture. First they paid homage to Arihant Bhagavan Mahavir. Then after paying homage to their teacher, Ambad Parivrajak, they did critical review of five vows they had accepted, and abandoned four kinds of food and water. Finally they made their bodies motionless and mind still.
-Sutra 82-88
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