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* (प्ररूपण) युक्तिपूर्वक सिद्ध करते हुए विचरण करते हैं। उनका कथन है, हमारे मतानुसार
जो कुछ भी अशुचि-अपवित्र प्रतीत होता है, वह मिट्टी लगाकर जल से धो लेने पर पवित्र
हो जाता है। इस प्रकार हम स्वच्छ-निर्मल देह एवं वेषयुक्त तथा स्वच्छाचार-निर्मल * आचारयुक्त हैं, शुचि-पवित्र, शुच्याचार-पवित्राचारयुक्त हैं, अभिषेक-स्नान द्वारा जल से में अपने आपको पवित्र कर बिना किसी विघ्न के स्वर्ग जायेंगे। THE PARIVRAJAK RELIGION OF CLEANSING
78. These Parivrajaks move around preaching and explaining to * the masses, and logically establishing the religion of charity (daan
dharma), religion of cleansing or conduct based on physical cleanliness (shauch dharma), bathing at pilgrimage centers (tirthabhishek). They say that according to their belief, whatever
appears to be impure becomes pure by applying sand and washing * with water. Thus, they claim, their body and dress is clean and pure
and so is their conduct. Purifying and cleansing themselves with
water by bathing they will reach heaven without any difficulty. * विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में परिव्राजकों के शौचधर्म के सम्बन्ध में बताया है, यह शौचधर्म अत्यन्त प्राचीन
प्रतीत होता है। ज्ञाताधर्मसूत्र में दो स्थानों पर इस शौचधर्म का उल्लेख आता है। अध्ययन आठ में १९वें तीर्थंकर भगवान मल्लिनाथ के समय में चोक्खा परिव्राजिका इसी शुचिमूलकधर्म का उपदेश देती है। ॐ जिसके साथ भगवती मल्ली ने तत्त्वचर्चा कर उसे निरुत्तर किया। पंचम अध्ययन में शुक परिव्राजक का
वर्णन है, वह भी सौगंधिका निवासी सुदर्शन सेठ को इसी शुचिमूलक धर्म का उपदेश करता है। सुदर्शन
सेठ थावच्चा-पुत्र अणगार के साथ इस विषय पर चर्चा करता है तब थावच्चा-पुत्र अणगार उसे * शौचधर्म की निस्सारता समझाकर विनयमूलधर्म का उपदेश करते हैं। कुछ समय पश्चात् शुक परिव्राजक * भी थावच्चा-पुत्र अणगार के साथ तत्त्वचर्चा करता है और शौचमूलधर्म के स्थान पर विनयमूलक
जिनधर्म में दीक्षा ग्रहण करता है। यह प्रसंग २२वें तीर्थंकर भगवान अरिष्टनेमि के युग का है। लगभग वैसा ही वर्णन भगवान महावीर के युग की परिव्राजक परम्परा में मान्य शौचधर्म का है। (विशेष द्रष्टव्य सचित्र ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, भाग १)
Elaboration—This aphorism describes the Parivrajak religion of cleansing. This appears to be a very ancient religion. This religion
of cleansing is mentioned at two places in Jnata Dharma Katha * Sutra. In the eighth chapter Chokkha Parivrajika, during * Bhagavan Mallinath's period, preaches. this cleansing based * religion. Bhagavati Malli silences her in a religious debate. In the
fifth chapter there is the story of Shuk Parivrajak who preaches
this cleansing based religion to Sudarshan Seth of Saugandhika * औपपातिकसूत्र
(242)
Aupapatik Sutra
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