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___ सांख्य-सांख्यमतानुयायी, ये पुरुष प्रकृति, बुद्धि, अहंकार, पंच महाभूत आदि पच्चीस तत्त्व मानते थे। इनमें कुछ ईश्वर को मानते थे। जो सेश्वर सांख्य कहलाते थे, दूसरे निरीश्वर सांख्य-जो ईश्वर को नहीं मानते थे। इनके आद्य प्रवर्तक कपिल ऋषि थे। अतः ये 'कपिल' भी कहलाते थे। योगी-जो अनेक प्रकार की हठयोग की साधना करते थे। भार्गव-भृगु ऋषि की परम्परा के अनुयायी। ___ वैदिक ग्रन्थों के अनुसार संन्यासियों की चार श्रेणियाँ होती हैं-कुटीचर, बहूदक, हंस और परमहंस (प्राचीन भारतीय संस्कृति कोष, पृ. २१६ तथा अभयदेव वृत्ति)। ___वृत्तिकार आचार्य अभयदेवसूरि ने चार यति परिव्राजकों का जो परिचय दिया है, उसके अनुसार
हंस परिव्राजक उन्हें कहा जाता था, जो पर्वतों की कन्दराओं में, पर्वतीय मार्गों पर, आश्रमों में, देवकुलों। देवस्थानों में या उद्यानों में वास करते थे, केवल भिक्षा हेतु गाँव में आते थे। परमहंस उन्हें कहा जाता
था, जो नदियों के तटों पर, नदियों के संगम-स्थानों पर निवास करते थे। जो देह-त्याग के समय परिधेय ) वस्त्र, कौपीन (लंगोट) तथा कुश-डाभ के बिछौने का परित्याग कर देते थे, वैसा कर प्राण त्यागते थे। ) बहूदक उन्हें कहा जाता था जो गाँव में एक रात तथा नगर में पाँच रात प्रवास करते थे। जो गृह में वास करते हुए क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार का त्याग किये रहते थे, वे कुटीव्रत या कुटीचर कहे जाते थे। (औपपातिक वृत्ति, पत्र ९२) । इस सूत्र में आठ प्रकार के ब्राह्मण-परिव्राजक तथा आठ प्रकार के क्षत्रिय-परिव्राजकों की दो गाथाओं में चर्चा की गई है। अम्बड, पाराशर, द्वैपायन आदि ब्राह्मण परिद जकों का उल्लेख आगमों में अनेक स्थानों पर प्राप्त है। वृत्तिकार ने उनके सम्बन्ध में केवल इतना-सा संकेत किया-“कण्ड्वादयः षोडश परिव्राजका लोकतोऽवसेयाः।" अर्थात् इन सोलह परिव्राजकों के सम्बन्ध में लोक-जनश्रुति से जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। ऐसा प्रतीत होता है, वृत्तिकार के समय तक ये परम्पराएँ लगभग लुप्त हो गई थीं। ___Elaboration-Aphorism 75 describes those Nirgranth Shramans who, after initiation, could not strictly observe faultless ascetic-discipline. This aphorism describes another class of homeless mendicants, the Parivrajaks (those who got initiated in the Brahminical tradition).
The Parivrajak Shramans were established scholars of Brahminical religion. According to Vashisht Dharma Sutra they shaved their heads and wore just one piece of cloth or skin. They slept on the ground and covered their bodies with the grass or hay uprooted by cows. They toured | all around India to conduct seminars to exchange views and discuss subjects like religious codes and philosophy. They were scholars of the six differed schools of Veda philosophy.
The literal meaning of Parivrajak is-one who renounces everything and takes to peripatetic life. The sanyasins who travel all around are called Parivrajaks. They used to spend all their time in meditation, study
उपपात वर्णन
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Description of Upapat
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