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अप्पेणं समारंभेणं, अप्पेणं आरंभसमारंभेणं वित्तिं कप्पेमाणीओ अकामबंभचेरवासेणं तामेव पइसेज्जं णाइक्कमंति, ताओ णं इत्थियाओ एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणीओ बहूई वासाइं (आउयं पालेंति, पालित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु वाणमंतरेसु देवलोएसु देवत्ताए-उववत्तारीओ भवंति, तहिं तेसिं गई, तहिं तेसिं ठिई, तहिं तेसिं
उववाए पण्णत्ते। तेसिं णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा !) चउसर्टि ॐ वाससहस्साई ठिई पण्णत्ता।।
७२. (ये) जो ग्राम यावत् सन्निवेश आदि में स्त्रियाँ होती हैं-(स्त्री-देह में जिनका जन्म र हुआ है) जो अन्तःपुर के अन्दर निवास करती हों, जिनके पति परदेश गये हों, जिनके पति
मर गये हों, जो बाल्यावस्था में ही विधवा हो गई हों, जो पतियों द्वारा परित्यक्ता हों। जो मातृरक्षिता हों। जिनका पालन-पोषण, संरक्षण माता द्वारा किया गया हो, जो पिता द्वारा रक्षित हों, जो भाइयों द्वारा रक्षित हों, जो कुलगृह-पीहर के अभिभावकों द्वारा संरक्षित हों, जो श्वसुर-कुल द्वारा, श्वसुर-कुल के अभिभावकों द्वारा रक्षित हों। जो पति या पिता आदि के मित्रों, अपने हितैषियों मामा, नाना आदि सम्बन्धियों, अपने सगोत्रीय देवर, जेठ आदि पारिवारिक जनों द्वारा जिनका पालन-पोषण-संरक्षण हो रहा हो। कितनीक स्त्रियाँ ऐसी होती हैं, जिनके नख, केश, काँख के बाल बढ़ गये हों। जो धूप (धूप, लोबान तथा सुरभित
औषधियों) का उपयोग नहीं करतीं। सुगन्धित पदार्थ, मालाएँ धारण नहीं करती हों। जो स्नान नहीं करने से पसीने, जल्ल, मल्ल, पंक आदि से पीड़ित रहती हों, मलिन रहती हों। जो दूध, दही, मक्खन, घृत, तेल, गुड़, नमक, मधु, मद्य और माँस वर्जित आहार करती हों। जिनकी इच्छाएँ स्वभावतः बहुत कम होती हों, जिनके धन, धान्य आदि परिग्रह बहुत कम हों। जो अल्प आरम्भ-समारम्भ-बहुत कम जीव-हिंसा द्वारा अपनी जीविका चलाती हों। मोक्ष की अभिलाषा या आत्म-शुद्धि के लक्ष्य के बिना जो अकाम ब्रह्मचर्य का पालन करती. हों, पति-शय्या का अतिक्रमण नहीं करती हों अर्थात् पतिव्रत धर्म का पालन करती हों। जो स्त्रियाँ इस प्रकार के आचरण द्वारा अपना जीवनयापन करती हों, वे बहुत वर्षों का आयुष्य भोगते हुए, (आयुष्य पूरा कर, मृत्यु का समय आने पर देह-त्यागकर वाणव्यन्तर देवलोकों में में से किसी में देव रूप में उत्पन्न होती हैं। वहाँ प्राप्त देवलोक के अनुरूप उनकी गति, स्थिति तथा उत्पत्ति होती है।) वहाँ उनकी स्थिति चौंसठ हजार वर्षों की होती है। UPAPAT OF TORMENTED WOMEN
72. Some women live in places like gram, aakar... and so on up ! to... sannivesh. There (they lead life as follows)-Some live in
उपपात वर्णन
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Description of Upapat
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