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________________ वशार्तमरण मरते हैं, जो सांसारिक इच्छा पूर्ति के निदान के साथ अज्ञानमय तपपूर्वक मृत्यु प्राप्त करते हैं, जो अन्तःशल्य- कलुषित भावों के काँटे को निकाले बिना या भाले आदि से अपने आपको बेधकर अन्तःशल्यपूर्वक मरते हैं, जो पर्वत से गिरकर मरते हैं अथवा अपने पर बहुत बड़ा पत्थर गिराकर मरते हैं, जो वृक्ष से गिरकर मरते हैं, मरुस्थल या निर्जल प्रदेश में मर जाते हैं अथवा मरुस्थल के किसी स्थान से-बड़े टीले आदि से गिरकर या धँसकर मरते हैं, जो पर्वत से झंपापात कर - छलाँग लगाकर मरते हैं, वृक्ष से छलाँग कर मरते हैं, मरुभूमि की बालू में फँसकर मरते हैं, जल में प्रवेश कर मरते हैं, अग्नि में प्रवेश कर मरते हैं, विष - भक्षण - जहर खाकर मरते हैं, शस्त्रों से अपने आपको चीरकर मृत्यु प्राप्त करते हैं, जो वृक्ष की डाली आदि से लटककर फाँसी लगाकर मरते हैं, जो मरे हुए हाथी, ऊँट आदि की देह में प्रविष्ट होकर गीधों की चोंचों से विदारित होकर गृद्ध स्पृष्ट मरण से मरते हैं, जो जंगल में खोकर मर जाते हैं, जो दुर्भिक्ष में भूख, प्यास आदि से मर जाते हैं, उस समय यदि उनके परिणाम संक्लिष्ट अर्थात् आर्त- रौद्रध्यानयुक्त न हों तो उस प्रकार की मृत्यु प्राप्त कर वे जीव वाणव्यन्तर देवलोकों में से किसी में देवरूप में उत्पन्न होते हैं । वहाँ उस देवलोक के अनुरूप उनकी गति (भव), स्थिति (आयु स्थिति) तथा उत्पत्ति होती है ऐसा बतलाया है। भगवन् ! उन देवों की वहाँ कितनी स्थिति होती है ? गौतम ! वहाँ उनकी स्थिति बारह हजार वर्ष की होती है । भगवन् ! उन देवों के वहाँ ऋद्धि, द्युति, यश, बल, वीर्य तथा पुरुषाकार, पराक्रम होता है या नहीं ? गौतम ! ऐसा होता है । भगवन् ! क्या वे देव परलोक के आराधक होते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता- वे देव परलोक के आराधक नहीं होते । 70. (b) Some embrace death because they have fallen from grace. Some helplessly die due to torture of hunger or other afflictions. Some accept death due to misery and agony of their dependence on mundane indulgences. Some die as a consequence of misguided penance in order to fulfill mundane desires. Some instead of removing the inner thorn of perversions, embrace death by piercing themselves with a spear, by falling from a hill, by crushing themselves under a rock, or by falling from a tree. Some die of thirst औपपातिकसूत्र Aupapatik Sutra Jain Education International ( 220 ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002910
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2003
Total Pages440
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_aupapatik
File Size16 MB
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