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गोयमा ! जे इमे जीव गामागर - णयर - णिगम - रायहाणि - खेड - कब्बड - मडंब - दोणमुह - पट्टणासम - संबाह - सण्णिवेसेसु अकामतण्हाए, अकामछुहाए, अकामबंभचेरवासेणं, अकाम अण्हाणग-सीयायव - दंसमसग - सेय- जल्ल-मल्लपंकपरितावेणं अप्पतरो वा भुज्जतरो वा कालं अप्पाणं परिकिलेसंति, अप्पतरो वा भुज्जतरो वा कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु वाणमंतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तर्हि तेसिं गई, तहिं तेसिं ठिई, तर्हि तेसिं उववाए पण्णत्ते ।
तेसिं णं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
गोयमा ! दसवाससहस्साइं टिई पण्णत्ता ।
अत्थि णं भंते ! तेसिं देवाणं इड्डी इ वा, जुई इ वा, जसे इवा, बले इवा, वीरिए इवा, पुरिसक्कारपरक्कमे इ वा ?
हंता अस्थि ।
ते णं भंते! देवा परलोगस्स आराहगा ?
णो इट्टे समट्ठे ।
६९. ( प्रश्न) भंते ! आप किस कारण से ऐसा कहते हैं कि कितनेक जीव देवलोक में * उत्पन्न होते हैं, कितनेक नहीं होते ?
(उत्तर) गौतम ! जो जीव ग्राम, आकर, नगर निगम, खेट, कर्बट, मडंब, द्रोणमुख, पत्तन, आश्रम, संवाह, सन्निवेश आदि में तृषा, क्षुधा, ब्रह्मचर्य, अस्नान, शीत, आसण, डांस - ( मच्छर), स्वेद - पसीना, जल्ल, मल्ल, पंक आदि परितापों से आत्मम-शुद्धि की भावना के बिना केवल परवशता के कारण, अनिच्छापूर्वक अपने आपको थोड़ा या अधिक क्लेश देते हैं, कष्ट सहन करते हैं, मृत्यु का समय आने पर देह का त्यागकर वे वाणव्यन्तर देवलोकों में से किसी लोक में देव के रूप में उत्पन्न होते हैं । वहाँ उनकी अपनी गति, स्थिति तथा उपपात होता है।
(प्रश्न) भगवन् ! वहाँ उन देवों की स्थिति - आयु कितने समय की बतलायी है ? (उत्तर) गौतम ! वहाँ उनकी स्थिति दस हजार वर्ष की बतलायी है।
(प्रश्न) भगवन् ! क्या उन देवों की ऋद्धि - (समृद्धि, पवार आदि सम्पत्ति), घुति - दैहिक कांति, यश-कीर्ति, बल - ( शारीरिक शक्ति), वीर्य - ( प्राणमयी शक्ति), पुरुषाकार, पराक्रम, ये सब बातें होती हैं ?
उपपात वर्णन
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