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( १ ) अणगार धम्मो ताव- इह खलु सव्वओ सव्वत्ताए मुडे भवित्ता अगाराओ अणगारयं पव्वइयस्स सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, मुसावाय- अदिण्णादाण - मेहुण
परिग्गह- राई भोयणाओ वेरमणं ।
अयमाउसो ! अणगारसामाइए धम्मे पण्णत्ते एयस्स धम्मस्स सिक्खाए उवट्टिए णिग्गंथे वाणिग्गंथी वा विहरमाणे आणाए आराहए भवति ।
( २ ) अगारधम्मं दुवालसविहं आइक्खइ, तं जहा - पंच अणुव्वयाई, तिण्णि गुणवयाई, चत्तारि सिक्खावयाई ।
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पंच अणुव्वयाई तं जहा - १. थूलाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, २. थूलाओ मुसावायाओ वेरमणं, ३. थूलाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, ४. सदारसंतोसे, ५. इच्छापरिमाणे ।
तिण गुणव्वयाई, तं जहा - ६ . अणत्थदंडवेरमणं, ७. दिसिव्वयं, ८. उवभोगपरिभोगपरिमाणं ।
चत्तारि सिक्खावयाई, तं जहा - ९. सामाइयं, १०. देसावयासियं, ११. पोसहोववासे, १२. अतिहिसंविभागे ।
अपच्छिमा मारणंतिया संलेहणाझूसणाराहणा ।
अयमाउसो ! अगारसामाइए धम्मे पण्णत्ते । एयस्स धम्मस्स सिक्खाए उवट्ठिए समणोवास वा समणोवासिया वा विहरमाणे आणाए आराहए भवइ ।
५७. भगवान ने धर्म के दो प्रकार बताये हैं- अगारधर्म और अनगारधर्म ।
(१) अनगारधर्म में साधक सर्वतः सर्वात्मना द्रव्य एवं भाव रूप से सावद्य कार्यों का परित्याग करता हुआ मुण्डित होकर, गृहवास का परित्याग करके अनगार दशा में प्रव्रजति होता है। वह सम्पूर्ण रूप में तीन करण - तीन योग से प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह तथा रात्रि - भोजन का त्याग करता है ।
भगवान ने कहा- "आयुष्मान् ! यह अनगारों के लिए सम्यक् आचरणीय धर्म कहा गया है। इस धर्म की शिक्षा - अभ्यास तथा आचरण में प्रयत्नशील रहते हुए निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी अरिहंतों की आज्ञा के आराधक होते हैं । "
(२) भगवान ने अगारधर्म १२ प्रकार का बतलाया - ५ अणुव्रत, ३ गुणव्रत तथा ४ शिक्षाव्रत ।
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