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५६. (क) तत्पश्चात् श्रमण भगवान महावीर ने भंभसार पुत्र राजा कूणिक, सुभद्रा * आदि रानियों तथा महती विशाल परिषद् को धर्मोपदेश किया। भगवान महावीर की
धर्मदेशना सुनने को उपस्थित परिषद् में ऋषि-अवधिज्ञानी साधु, मुनि-मौनी या वाक्संयमी साधु, यति-चारित्र के प्रति अति यत्नशील श्रमण, चार जाति के देवता तथा सैकड़ों सैकड़ों, हजारों श्रोताओं के समूह उपस्थित थे। (उस सभा को अर्हत् प्रभु ने श्रुतचारित्ररूप धर्म का
उपदेश दिया।) o (भगवान महावीर) ओघबली-सदा एक समान रहने वाले अक्षीण बल के धारक थे।
अतिबली-अनन्त बल सम्पन्न थे एवं महाबली-प्रशस्त बलयुक्त थे। असीम वीर्य(आत्मशक्ति) बल (शरीर बल) तेज (प्रभाव) महत्ता तथा कांति (शारीरिक सुन्दरता) से ० युक्त थे। भगवान की ध्वनि शरत् काल के नूतन मेघ की गर्जना जैसी गम्भीर, क्रौंच पक्षी
के निर्घोष तथा नगाड़े की ध्वनि के समान मधुर, गम्भीर (बहुत दूर तक सुनाई देने वाली) स्वरयुक्त थी। वाणी हृदय में विस्तृत होती फैलती हुई, कण्ठ में वर्तुलाकार गूंजती हुई तथा मूर्धा में परिव्याप्त होती हुई अत्यन्त स्पष्ट उच्चारणयुक्त अक्षरों सहित, अस्पष्ट उच्चारण या
हकलाहट से रहित, सर्व-अक्षर सन्निपात-समस्त अक्षरों के संयोग से निष्पन्न, पूर्णता तथा ॐ स्वर-माधुर्य-लययुक्त थी। वह भाषा प्रत्येक श्रोता की अपनी-अपनी भाषा में परिणत होने के
की क्षमतायुक्त थी। एक योजन तक पहुँचने वाले स्वर में भगवान ने अर्द्धमागधी भाषा में 9 धर्म का कथन किया। उपस्थित सभी आर्य-अनार्य जनों को अग्लानभाव-सहजभाव से धर्म
का आख्यान किया। भगवान द्वारा बोली गई वह अर्द्धमागधी भाषा उन सभी आर्यों और अनार्यों की भाषाओं में परिणमित हो गई। BHAGAVAN'S SERMON
56. (a) Then Shraman Bhagavan Mahavir delivered his sermon to king Kunik, the son of Bhambhasar, Subhadra and other queens and the great congregation. This large congregation constituted of Rishis (ascetics endowed with Avadhi-jnana), Munis (ascetics observing the vow of silence or discipline of speech), Yatis (ascetics immaculate in observing the code of conduct), gods of four kinds, and hundreds and
thousands of other people. (The Arhat gave the teachings of Shrut or 9 religious conduct to that religious congregation.) ATTRIBUTES OF BHAGAVAN'S SPEECH
Bhagavan Mahavir was endowed with constantly uniform and en inexhaustible strength (oghbali). His strength was infinite (atibali)
समवसरण अधिकार
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Samavasaran Adhikari
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