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४७. तए णं से बलवाउए कोणियस्स रण्णो भंभसारपुत्तस्स आभिसेक्कं हत्थिरयणं * पडिकप्पियं पासइ, हयगय जाव सण्णाहियं पासइ, सुभद्दापमुहाणं देवीणं पडिजाणाई
उवट्टवियाई पासइ, चंपं णयरिं सभिंतरं जाव गंधवट्टिभूयं कयं पासइ, पासित्ता
हट्टतुट्ठचित्तमाणदिए, पीअमणे जाव हियए जेणेव कूणिए राया भंभसारपुत्ते, तेणेव * उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल जाव एवं वयासी
कप्पिए णं देवाणुप्पियाणं आभिसक्के हत्थिरयणं, हयगयरहपवरजोहकलिया य ॐ चाउरंगिणी सेणा सण्णाहिया, सुभद्दापमहाणं य देवीणं बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए
पाडिएक्क-पाडिएक्काई जत्ताभिमुहाई जुत्ताई जाणाई उवट्ठावियाई चंपा णयरी * सभिंतरबाहिरिया आसित्त जाव गंधवट्टिभूया कया, तं णिज्जंतु णं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं अभिवंदया।
४७. इसके बाद सेनानायक ने भंभसार पुत्र राजा कूणिक के प्रधान हाथी को सजा हुआ * देखा। (घोड़े, हाथी, रथ आदि सहित) चतुरंगिणी सेना को सुसज्जित देखा; सुभद्रा आदि
रानियों के लिए तैयार कर लाये हुए यान देखे। यह भी देखा, चम्पा नगरी भीतर और बाहर से स्वच्छ की जा चुकी है, वह सुगन्ध से महक रही है। यह सब देखकर वह मन में बहुत ही हर्षित, आनन्दित एवं प्रसन्न हुआ। राजा कूणिक के पास आया। दोनों हाथ जोड़कर राजा से निवेदन किया
“देवानुप्रिय ! आभिषेक्य हस्तिरत्न तैयार है। हाथी, घोड़े, रथ, उत्तम योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना सन्नद्ध है। सुभद्रा आदि रानियों के हित, प्रत्येक के लिए अलग-अलग जुते । हुए यात्रा के योग्य यान बाहरी सभाभवन के निकट तैयार खड़े हैं। चम्पा नगरी की भीतर
और बाहर से सफाई करवा दी गई है, पानी का छिड़काव करवा दिया गया है, वह सुगन्ध " से महक रही है। देवानुप्रिय ! आप श्रमण भगवान महावीर की वन्दना हेतु पधारें।"
___47. Then the army commander inspected the elephant meant for king Kunik, the son of Bhambhasar, the four pronged army in state of readiness, the carriages meant for Subhadra and other queens and ensured that Champa city and its outskirts were cleaned and perfumed. After inspection he was extremely satisfied, pleased and delighted. He went to the king and joining his palms submitted
"Beloved of gods ! The elephant for the royal ride is ready and the four pronged army is in state of readiness. Separate carriages " औपपातिकसूत्र
(164)
Aupapatik Sutra
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