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________________ रह-पवरजोहकलियं च चाउरंगिणिं सेणं सण्णाहेहि, सुभद्दापमुहाण य देवीणं बाहिरियाए ॐ उवट्ठाणसालाए पाडियक्क-पाडियक्काइं जत्ताभिमुहाई जुत्ताइं जाणाई उवट्ठवेहि।। चंपं च णयरिं सभिंतरबाहिरियं आसिय-सम्मज्जिउवलितं, सिंघाडग-तियचउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु आसित्त-सित्तसुइ-सम्मट्ट-रत्यंतरा वणवीहियं, मंचाइमंचकलियं, णाणाविहराग-उच्छिय-ज्झयपडागाइपडागमंडियं, लाउल्लोइयमहियं, गोसीस सरसरसत्तचंदण जाव गंधवट्टिभूयं। ___ करेह य, कारवेह य, करेत्ता य कारवेत्ता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि। णिज्जाहिस्सामि समणं भगवं महावीरं अभिवंदए। ४०. तब राजा कूणिक ने अपने बलव्यापृत-सैन्य सम्बन्धी कार्यों के अधिकारी सेनानायक को बुलाया। बुलाकर कहा-'देवानुप्रिय ! अभिषेक योग्य पट्टहस्ति (राजा की सवारी में काम आने योग्य) हस्तिरत्न-उत्तम हाथी को सुसज्जित कराओ। घोड़े, हाथी, रथ तथा श्रेष्ठ योद्धाओं वाली चतुरंगिणी सेना को भी तैयार करो। सुभद्रा आदि रानियों के लिए, उनमें से प्रत्येक के लिए (अलग-अलग) यात्राभिमुख-यात्रा के लिए तैयार जोते हुए यानों को बाहरी सभाभवन के निकट लाकर उपस्थित करो। चम्पा नगरी के बाहर और भीतर, उसके संघाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख, राजमार्ग तथा सामान्य मार्ग, इन सबकी सफाई कराओ। वहाँ पानी का छिड़काव कराओ, गोबर आदि का लेप कराओ। नगरी के रथ्यान्तर-गलियों के मध्य भागों तथा आपणवीथियों* बाजार के रास्तों की भी सफाई कराओ, पानी का छिड़काव कराओ, उन्हें स्वच्छ व सुहावने कराओ। मार्ग में स्थान-स्थान पर लोगों के बैठने तथा खड़े रहने के लिए मंचातिमंच-सीढ़ियों से जुड़े हुए प्रेक्षागृह तैयार कराओ। तरह-तरह के रंगों की ऊँची ध्वजाएं, जिन पर सिंह, चक्र आदि चिह्नों वाली पताकाएँ तथा अतिपताकाएँ-बड़ी पताकाएँ लगवाओ, जिनके दोनों पसवाड़े अनेकानेक छोटी-छोटी पताकाओं से सजे हों। नगरी की दीवारों को लिपवाओ, पुतवाओ। उन पर गोरोचन तथा लाल चन्दन के पाँचों अंगुलियों और हथेली सहित हाथ के छापे लगवाओ। लोबान, धूप आदि की महक से वहाँ के वातावरण को उत्कृष्ट सुरभिमय करवा दो, जिससे सुगन्धित धुएँ की प्रचुरता से वहाँ गोल-गोल धूममय छल्ले जैसे बनते दिखाई दें। इनमें जो करने का हो, उसे स्वयं करके तथा कर्मकरों, सेवकों, श्रमिकों आदि से कराने " योग्य हो उसे करवाकर मुझे सूचित करो कि आज्ञानुरूप सब कार्य सम्पन्न हो गया है। यह * सब हो जाने पर मैं भगवान के अभिवन्दन हेतु जाऊँगा।" PRODARADAR.DR.RRDARODARODMROD 303081308GORPOTHORTHORVARNA समवसरण अधिकार (157) Samavasaran Adhikaran For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.002910
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2003
Total Pages440
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_aupapatik
File Size16 MB
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