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SORRODMRODPORD86965800.0000 " जिनके पास हस्तिप्रमाण (हाथी जितना ढेर) धन होता है वे ईभ्यश्रेष्ठी कहलाते हैं। इनके तीन प्रकार
हैं जघन्य-मणि-मक्ता-स्वर्ण-रजत आदि की राशि हो. मध्यम-वज्र हीरे मणि-माणिक्य आदि धन के स्वामी तथा उत्कृष्ट-जिनके पास हस्तिप्रमाण वज्र हीरों की राशि होती है। ___ सार्थवाह-जो (१) गणिम-गिनती करने योग्य नारियल, सुपारी आदि, (२) धरिम-तौलकर बेची जाने वाली-धान्य, शक्कर आदि, (३) मेय-छोटे बर्तनों से मापकर दी जाने वाली-दूध आदि, तथा
(४) परिच्छेद्य-परीक्षा करके बेची जाने वाली-हीरा, मोती आदि जवाहरात वस्तुएँ। जो इन वस्तुओं के * व्यापार हेतु साथ आने वालों को सहयोग रूप में धन देकर व्यापार करता है, उनकी कुशल-क्षेम की चिन्ता करता है, उन्हें सार्थवाह कहा जाता था। (आचार्य श्री घासीलाल जी कृत टीका, पृष्ठ ३५३)
Elaboration—The commentator (Tika) has provided more information about the terms ibhya and sarthavaha. Those who have wealth that can be made into a heap of the size of an elephant are called ibhya (affluent) merchants. They have three categories-ordinary have gems, beads, silver etc. in this heap; medium have diamonds, rubies and other gems; and the best have just diamonds.
Sarthavaha (caravan chief) is one who finances and takes care of the merchants who join his caravan and deal in four kinds of merchandise (1) ganim-traded by numerical count (coconut, betel nut etc.), (2) dharim, traded by weight (grains, sugar etc.), (3) meya-traded by volume measure (milk etc.), and (4) parichchhedya-traded by quality testing (diamond, pearl etc.) (Aupapatik Sutra Tika by Acharya Shri Ghasilal ji M., p. 353) महाराज कूणिक को सूचना
३९. तए णं से पवित्तिवाउए इमीसे कहाए लढे समाणे हद्वतुट्ठ जाव हियए हाए जाव अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमित्ता चंपाणयरिं मझंमज्झेणं जेणेव बाहिरिया सा चेव हेट्ठिला वत्तव्वया जाव णिसीयइ, णिसीइत्ता तस्स पवित्तिवाउयस्स अद्धत्तेरससयसहस्साई पीइदाणं दलयइ, दलयित्ता सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारित्ता, सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ।
३९. प्रवृत्ति-निवेदक को जब (भगवान महावीर के आगमन की) बात मालूम हुई, वह हर्षित एवं उल्लसित हुआ। उसने स्नान किया, राजसभा में प्रवेशोचित उत्तम, मांगलिक वस्त्र पहने। संख्या में कम पर बहुमूल्य आभूषणों से शरीर को अलंकृत किया। यों सजकर वह अपने घर से निकला। (अपने घर से) निकलकर चम्पा नगरी के बीच, जहाँ राजा कूणिक का महल था, जहाँ बहिर्वत्ती राजसभाभवन था, (जहाँ महाराज कूणिक थे) वहाँ आया। राजा सिंहासन पर बैठा। (प्रवृत्ति निवेदक से भगवान के आगमन का संवाद सुनकर प्रसन्न
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समवसरण अधिकार
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Samavasaran Adhikari
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