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२. वाणव्यन्तर देव
निवास-तिर्यक् लोक के समभूतल भू-भाग की अधोदिशा में रत्नप्रभा पृथ्वी के सौ योजन ऊपर तथा ऊपरी भाग से सौ योजन नीचे, मध्य के आठ सौ योजन तिरछे भू-भाग में वाणव्यन्तर देवों के असंख्य लक्ष नगरावास है। ___ इनके ८-८ भेद हैं-(१) पिशाच, (२) भूत, (३) यक्ष, (४) राक्षस, (५) किन्नर, (६) किंपुरुष, (७) भुजगपति महाकाय महोरग, तथा (८) गंधर्वगण
(१) अणपत्रिक, (२) पणपन्निक, (३) रिषिवादिक, (४) भूतवादिक, (५) क्रंदित, (६) महाक्रंदित, (७) कुहंड, (८) पतगदेव।
मेरुपर्वत से दक्षिण तथा उत्तर दोनों दिशाओं में इनके भी दो-दो इन्द्र कुल १६ + १६ = ३२
वाणव्यन्तर देवों के आठ चैत्यवृक्ष (प्रिय अथवा पवित्र वृक्ष) हैं-(१) पिशाचों का कंदब वृक्ष, (२) यक्षों का वट वृक्ष, (३) भूतों का तुलसी, (४) राक्षसों का कंटक, (५) किन्नरों का अशोक, (६) किंपुरुषों का अशोक, (७) भुजंगों का नाग वृक्ष, (८) गंधर्वो का तिंदुक वृक्ष। .
इनकी रुचि व वस्त्र आदि के विषय में उक्त सूत्र में वर्णन किया ही है। ये सभी देव भवनपति देवों 9 से ऊपर के भाग में अधोलोक में निवास करते हैं। (विस्तृत वर्णन के लिए गणितानुयोग तिर्यक् लोक, २ पृष्ठ ४२०-४२८ तक देखें) ३. ज्योतिषी देव
ज्योतिषी देवों के पाँच भेद हैं-(१) चन्द्र, (२) सूर्य, (३) ग्रह, (४) नक्षत्र, और (५) तारा। ।
निवास-मध्यलोक के समभूतल भाग से सात सौ नब्बे योजन ऊपर आने पर, एक सौ दस योजन के मध्यवर्ती भू-भाग में ज्योतिषी देवों के असंख्य स्थान-असंख्य लाख विमानावास हैं। ये ज्योतिषी देव * मेरुपर्वत की चारों दिशाओं में परिमण्डलाकार गति में परिभ्रमण करते रहते हैं। इन्हीं की गति के
कारण मनुष्य क्षेत्र (अढाई द्वीप) में दिन, रात, मास, संवत्सर आदि की गणना होती है। एक विशेष बात ॐ यह है
"रयणियर-दिणयराणं नक्खत्ताणं महग्गहाण च।।
चार विसेसेण भवा सुह-दुक्ख विही मणुस्साण॥" -जीवाभिगमसूत्र, पृ. ३, उ. २ चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र और ग्रहों की विशेष गति के कारण मनुष्यों को सुख-दुःख की प्राप्ति होती है। अर्थात् इनकी गति का प्रभाव मनुष्यों पर पड़ता है। (इनका विस्तृत वर्णन पण्णवणा, पद २; जीवाभिगम प्रतिपत्ति ३ तथा सूर्यप्रज्ञप्ति प्राभृत १९ में है। देखें गणितानुयोग, तिर्यक् लोक, पृष्ठ ४४२ से ४५०)
४. वैमानिक देव * स्थान-मध्यलोक के समभूतल भूमि भाग से असंख्य क्रोडा-क्रोडी योजन ऊपर जाने पर सौधर्म आदि
कल्प विमान (देवलोक) प्रारम्भ होते हैं। इनमें सौधर्म, ईशान आदि बारह कल्प विमान हैं। इनमें रहने
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समवसरण अधिकार
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Samavasaran Adhikari
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