SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . * अनगारों द्वारा उत्कृष्ट श्रुत आराधना ३१. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे अणगारा भगवंतो अप्पेगइया आयारधरा, जाव विवागसुयधरा, तत्थ तत्थ तहिं तहिं देसे देसे गच्छागच्छिं गुम्मागुम्मिं फड्डाफडिं। अप्पेगइया वायंति, अप्पेगइया पडिपुच्छंति, अप्पेगइया परियतृति, अप्पेगइया अणुप्पेहंति। अप्पेगइया अक्खेवणीओ, विक्खेवणीओ, संवेयणीओ, णिव्येयणीओ बहुविहाओ कहाओ कहंति। ___ अप्पेगइया उड्डंजाणू, अहोसिरा, झाणकोट्टोवगया संजमेणं। तवसा अप्पाणं भावमाणा विहरंति। ३१. उस काल, उस समय जब भगवान महावीर के साथ अनेक अन्तेवासी अनगारश्रमण थे। उनमें कई एक आचारधर (आचारांगसूत्र, सूत्रकृतांग यावत् प्रश्नव्याकरण आदि ११ अंगों के धारक थे) तथा कई विपाकश्रुत के धारक थे। वे वहाँ उसी उद्यान में भिन्न भिन्न स्थानों पर एक-एक गच्छसमूह के रूप में, छोटे-छोटे समूहों के रूप में तथा फुटकर * रूप से विभक्त होकर अवस्थित थे। उनमें कई आगमों की वाचना प्रदान करते थे, कई प्रतिपृच्छा-प्रश्नोत्तर द्वारा शंका-समाधान करते थे। कई परिवर्तना-पुनरावृत्ति करते थे। कई * अनुप्रेक्षा-(चिन्तन-मनन) करते थे। * उनमें कई श्रमण आक्षेपणी-मोहमाया से दूर कर समत्व की ओर उन्मुख करने वाली, * विक्षेपणी-कुत्सित मार्ग से विमुख करने वाली, संवेगनी-मोक्ष-सुख की अभिलाषा उत्पन्न करने वाली तथा निर्वेदनी-संसार से वैराग्य उत्पन्न करने वाली-यों अनेक प्रकार की धर्मकथाएँ कहते थे। उनमें कई अपने दोनों घुटनों को ऊँचा उठाये, मस्तक को नीचा झुकाये, यों एक विशेष आसन में अवस्थित हो ध्यानरूप कोष्ठ में प्रविष्ट हो-ध्यानरत थे। ॐ इस प्रकार वे अनगार संयम तथा तप द्वारा आत्मा को भावित करते हुए विहार 2 करते थे। *AUPAPATIK EXEMPLARY STUDY OF SCRIPTURES BY ANAGARS 31. During that period of time numerous sthavir (senior ascetic) disciples (antevasi) of Shraman Bhagavan Mahavir accompanied him. Some of whom were scholars of (the eleven Angas starting and * औपपातिकसूत्र Aupapatik Sutra * TES (122) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002910
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2003
Total Pages440
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_aupapatik
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy