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से किं तं कम्मविउसग्गे ?
कम्मविउस्सग्गे अट्ठविहे पण्णत्ते । तं जहा - १. णाणावरणिज्जकम्मविउस्सग्गे,
दरिसणावरणिज्जकम्मविउस्सग्गे,
३.
२.
वेयणिज्जकम्मविउस्सग्गे,
४. मोहणिज्जकम्मविउस्सग्गे, ५. आउयकम्मविउस्सग्गे, ६. णामकम्मविउस्सग्गे, ७. गोयकम्मविउस्सग्गे, ८. अंतरायकम्मविउस्सग्गे । से तं कम्मविउस्सग्गे । से तं भावविउस्सग्गे ।
३०. (ढ) व्युत्सर्ग तप का स्वरूप क्या है ? (उत्कृष्ट भावनापूर्वक ममत्व का त्याग करना | व्युत्सर्ग है ।)
व्युत्सर्ग के दो भेद हैं- (१) द्रव्य - व्युत्सर्ग, (२) भाव - व्युत्सर्ग |
(१) द्रव्य - व्युत्सर्ग के कितने भेद हैं ?
द्रव्य - व्युत्सर्ग के चार भेद इस प्रकार हैं - (क) शरीर - व्युत्सर्ग- देह तथा दैहिक सम्बन्धों की आसक्ति का त्याग, (ख) गण - व्युत्सर्ग- प्रतिमा आदि की आराधना हेतु - गण एवं गण के ममत्व का त्याग, (ग) उपधि - व्युत्सर्ग- वस्त्र, पात्र आदि उपधि के ममत्व का त्याग, (घ) भक्तपान - व्युत्सर्ग- आहार- पानी एवं तत्सम्बन्धी लोलुपता आदि का त्याग ।
(२) भाव - व्युत्सर्ग क्या है ?
भाव - व्युत्सर्ग के तीन भेद हैं- (क) कषाय - व्युत्सर्ग, (ख) संसार - व्युत्सर्ग, (ग) कर्मव्युत्सर्ग।
- व्युत्सर्ग क्या है ?
कषाय
कषाय - व्युत्सर्ग के चार भेद इस प्रकार हैं - (१) क्रोध - व्युत्सर्ग- क्रोध का त्याग, (२) मान - व्युत्सर्ग- अहंकार का त्याग, (३) माया - व्युत्सर्ग- छल-कपट का त्याग, (४) लोभव्युत्सर्ग- लालच का त्याग। यह चारों कषायों का त्याग रूप कषाय- व्युत्सर्ग का विवेचन है ।
संसार - व्युत्सर्ग क्या है ?
संसार - व्युत्सर्ग चार प्रकार का है - ( १ ) नैरयिकसंसार - व्युत्सर्ग-नरकगति बँधने के कारणों का त्याग, (२) तिर्यक्संसार - व्युत्सर्ग- तिर्यंचगति बँधने के कारणों का त्याग, (३) मनुजसंसार - व्युत्सर्ग- मनुष्यगति बँधने के कारणों का त्याग, (४) देव - संसार - व्युत्सर्ग| देवगति बँधने के कारणों का त्याग। (चार गति के कारणों का विस्तारपूर्वक वर्णन स्थानांगसूत्र ४ में देखें। यह संसार - व्युत्सर्ग का स्वरूप है ।
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