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१९. मोणचर, २०. दिट्ठलाभिए, २१ अदिट्ठलाभिए, २२. पुट्ठलाभिए, अपुलाभिए, २४. भिक्खालाभिए, २५ अभिक्खालाभिए, २६. अण्णगिलायए, २७. ओवणिहिए, २८. परिमियपिंडवाइए, २९. सुद्धेसणिए, ३०. संखादत्तिए ।
२३.
सेतं भिक्खायरिया |
३०. (घ) भिक्षाचर्या क्या है ?
भिक्षाचर्या अनेक प्रकार की है, जैसे - ( 9 ) द्रव्याभिग्रह चर्या - अमुक प्रकार की अमुक वस्तु अमुक स्थिति में मिले तो ग्रहण करना अन्यथा नहीं, ऐसा संकल्प करने वाला मुनि द्रव्याभिग्रहचरक होता है, (२) क्षेत्राभिग्रह चर्या - अमुक ग्राम, नगर, स्थान आदि में मिले तो लेना, ऐसी प्रतिज्ञा स्वीकार करना, (३) कालाभिग्रह चर्या - प्रथम पहर, दूसरा पहर आदि अमुक समय से सम्बन्धित प्रतिज्ञा स्वीकार करना, (४) भावाभिग्रह चर्या -हास, गान, विनोद आदि भावों में संलग्न दाता मिले तो लेना, अन्यथा नहीं, इस प्रकार का अभिग्रह करना, (५) उत्क्षिप्त चर्या - भोजन पकाने के बर्तन से गृहस्थ द्वारा अपने प्रयोजन हेतु निकाला हुआ आहार लेने का अभिग्रह, (६) निक्षिप्त चर्या - भोजन पकाने के बर्तन से नहीं निकाला हुआ आहार ग्रहण करने की प्रतिज्ञा करना, (७) उत्क्षिप्त - निक्षिप्त चर्या - भोजन पकाने के बर्तन से निकालकर उसी जगह या दूसरी जगह रखा हुआ आहार अथवा अपने प्रयोजन से निकाला हुआ या नहीं निकाला हुआ - दोनों प्रकार का आहार ग्रहण करने की प्रतिज्ञा, (८) निक्षिप्तउत्क्षिप्त चर्या - भोजन पकाने के बर्तन में से निकालकर अन्य स्थान पर रखा हुआ, फिर उसी में से दिया आहार ग्रहण करने की प्रतिज्ञा, ( ९ ) वर्तिष्यमाण चर्या - खाने के लिए थाली में परोसे हुए भोजन में से मिलेगा तो लूँगा ऐसी प्रतिज्ञा, (१०) संहियमाण चर्या - दाता ने जो भोजन ठण्डा करने के लिए पात्र आदि में फैलाया हो, फिर समेटकर पात्र आदि में डाला हो, ऐसे (भोजन) में से आहार आदि लेने की प्रतिज्ञा, (११) उपनीत चर्या - दाता के लिए अन्य किसी के द्वारा उपहार रूप में भेजी गई भोजन-सामग्री में से भिक्षा मिलेगी तो लूँगा ऐसी प्रतिज्ञा, (१२) अपनीत चर्या - किसी को देने के लिए रखी खाद्य-सामग्री में से निकालकर अन्यत्र रखी सामग्री में से ग्रहण करने की प्रतिज्ञा, (१३) उपनीतापनीत चर्याकिसी ने दाता के लिए भोजन - सामग्री भेजी हो, उस उपहार में आयी सामग्री में से मिले तो आहार ग्रहण करने की प्रतिज्ञा अथवा पहले जिसका गुणगान किया हो और फिर आलोचना करके लेना, (१४) अपनीतोपनीत चर्या - किसी के लिए उपहार रूप में भेजने हेतु पृथक् रखी हुई भोजन-सामग्री में से भिक्षा लेने की प्रतिज्ञा अथवा पहले जिसकी आलोचना की हो और फिर गुणगान करके आहार ग्रहण करना, (१५) संसृष्ट चर्या - खाद्य वस्तु से लिप्त
औपपातिकसूत्र
Aupapatik Sutra
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