________________
रहते थे । वे मिट्टी के ढेले और स्वर्ण को एक समान दृष्टि से देखते थे। सुख और दुःख में समान भाव रखते थे । वे इहलौकिक तथा पारलौकिक आसक्ति से बँधे हुए नहीं थे । वे संसारपारगामी-चतुर्गति रूप संसार के पार पहुँचने वाले - तथा कर्मों का निर्घातन-नाश करने हेतु अभ्युत्थित - प्रयत्नशील होकर विचरण करते थे।
1
ASCETIC PRAXIS
29. In a year, except for the monsoon-stay (four months of the monsoon season), for eight months of summer and winter seasons these Shraman Bhagavants never stayed in a village for more than one night and in a city for more than five nights.
Like sandal-wood they were benevolent even for those who harmed them. In other words, they were beyond any feelings of attachment and aversion for things painful like a sharp edged cutting tool or soothing like sandal-wood. To them a lump of sand or that of gold were same. They were equanimous in pleasure and pain. They were free of any obsessions related to this life and the other. They were destined to cross the ocean of cycles of rebirth in the four gatis (dimension or realm of birth) namely, divine, human, animal and infernal. They led a peripatetic life in their endeavour to destroy the bondage of karmas.
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में साधुओं के लिए ग्राम में एकरात्रिक तथा नगर में पंचरात्रिक प्रवास का उल्लेख हुआ है । साधारणतः साधुओं के लिए मासकल्प विहार विहित है।
वृत्तिकार आचार्य अभयदेव सूरि के कथनानुसार - एतच्च प्रतिमा कल्पिकानामाश्रित्योक्तम् (वृत्ति पत्र ३६) यह कल्प प्रतिमाधारी श्रमणों को लक्ष्य करके कहा गया है। आचार्य श्री घासीलाल जी महाराज ने अपनी टीका में गाँव में एक रात्रि से, एक दिन से एक सप्ताह तक तथा नगर में पाँच रात्रि से एक सप्ताह से पाँच सप्ताह अर्थात् उनतीस दिन तक निवास करने की प्राचीन परम्परा का उल्लेख किया है। यस्मिन् दिवसेऽनगारा ग्राममागच्छन्ति स दिवसः पुनर्यावन्नावर्तते पर्यन्तः काल एक रात्र शब्देन गृह्यते तेनैक सप्ताह निवासिन इत्यर्थः । नगरे पंचरात्रिका :- यस्मिन् दिवसेऽनगारा नगरमागच्छन्ति स दिवसः पंचवारमावर्तितः पंचरात्रमुच्छ्रयते, तेवैकोनत्रिंशदिवसवासिन इत्यर्थः (पी. व. टीका, पृष्ठ २००)
Elaboration-This aphorism informs about the one night village-stay and five night city-stay for ascetics. However, in general the code of month long stay is in practice.
According to the commentator (Vritti) Abhayadev Suri the aforesaid rule is for the Shramans who are practicing pratimas (special codes and resolutions for an ascetic). In his commentary (Tika), Acharya Ghasilal ji समवसरण अधिकार
Jain Education International
(73)
For Private & Personal Use Only
Samavasaran Adhikar
www.jainelibrary.org