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षष्ठी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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हुए हैं काउय-कपोत वर्ण वाली या कृष्ण अगणि-वण्णाभा-अग्रि के समान प्रभायुक्त भूमि है तथा कक्खड-फासा-कर्कश स्पर्श दुरहियासा-दुःख से सहन किया जाता है असुभा नरगा-नरक अशुभ हैं असुभा नरएसु वेयणा-और नरक की वेदना भी अशुभ ही है नो नहीं च-पुनः एव-अवधारणार्थक है णं-वाक्यालङ्कार में नरए-नरक में नेर-इया-नारकी निद्दायंति-निद्रा लेते हैं वा-अथवा पयलायंति-प्रचला नाम वाली निद्रा लेते हैं वा-अथवा सुति-स्मृति वा-अथवा रतिं-रति वा-अथवा धिति-धृति वा-अथवा मतिं-बुद्धि की उवलभंति-प्राप्ति करते हैं ते-वे तत्थ-वहां उज्जलं-उज्ज्वल विउलं-विपुल पगाढं-अत्यन्त गाढ कक्कसं-कर्कश कडुयं-कटुक चंडं-चण्ड रुइं-रुद्र दुक्ख-दुःख रूप तिक्खं-तीक्ष्ण तिव्वं-तीव्र दुरहियासं-जो दुःखपूर्वक सहन की जाती हैं नरएसु-नरकों में नेरइया-नारकी नरयं-वेयणं-नरक की वेदना को पच्चणुभवमाणा-अनुभव करते हुए विहरंति-विचरते हैं णं-सर्वत्र वाक्या-लङ्कार में है ।
मूलार्थ-वे नरक-स्थान भीतर से गोलाकार और बाहिर से चतुष्कोण हैं। नीचे क्षुर के समान संस्थान से स्थित हैं। वहां सदैव तम और अन्धकार ही रहता है । सूर्य, चन्द्रग्रह और नक्षत्रों की ज्योति की प्रभा उनसे दूर हो गई है । उन नरकों का भूमि-तल मेद, वसा, मांस, रुधिर
और विकृत रुधिर समूह के कीचड़ से लिप्त रहता है । वे अशुचि और कुत्सित हैं । वहां उत्कट दुर्गन्ध आती है और कृष्णाग्नि के समान प्रभा है। कर्कश स्पर्श दुःख से सहन किया जाता है। नरक अशुभ हैं । उनकी वेदनाएं भी अशुभ ही हैं । नरक में नारकियों को निद्रा तथा प्रचला नाम निद्रा नहीं आती, ना ही उनको स्मृति, रति, धृति और मति उपलब्ध होती है । वे नारकी नरक में उज्ज्वल, विपुल, प्रगाढ़, कर्कश, कटुक, चण्ड, रौद्र, दुःख-मय, तीक्ष्ण, तीव्र और दुःसह्य वेदना का अनुभव करते हुए विचरते हैं ।
टीका-इस सूत्र में नरक और नरक के दुःखों का दिग्दर्शन कराया गया है, जैसे-नरक का भीतरी भाग गोलाकार और बहिर्भाग चतुष्कोण है । नरकों की भूमि क्षुर
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