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deceit and greed. They have a desire for food. They have sense of fear, sensual desire of mating and also attachment. They feel pleasure and pain like human beings. So there is no scope of any doubt in believing that plant has life.
Vegetable has intimate influence on our daily life. Still discriminating 4 people avoid violent activity towards plant life when it is without any definite purpose.
The environment of the world and of India in particular is changing adversely due to indiscriminate cutting of trees. It is causing dearth of rain-fall. Many states are experiencing famine continuously. Thousands of human beings and millions of animals are dying. Jain scriptures have always laid emphasis on benefits of plant life for human beings and its importance. Even in Vedic scriptures, it is mentioned that trees and the like should be loved like sons. The trees are the most intimate friends of mankind and provide strength to their life-force. Violence towards plant life causes the most adverse effect on the environment. हिंसक जीवों का दृष्टिकोण APPROACH OF VIOLENT LIVING BEINGS
१८. सत्ते सत्तपरिवज्जिया उवहणंति दढमूढा दारुणमई कोहा माणा माया लोहा हस्स रई अरई सोय वेयत्थी जीय-धम्मत्थ-कामहेउं सवसा अवसा अट्ठा अणट्ठाए य तसपाणे थावरे य हिंसंति मंदबुद्धी। ___ सवसा हणंति, अवसा हणंति, सवसा-अवसा दुहओ हणंति। अट्ठा हणंति, अणट्ठा हणंति, अट्ठाअणट्ठा दुहओ हणंति। हस्सा हणंति, वेरा हणंति, रईय हणंति, हस्सा-वेरा-रईय हणंति। कुद्धा हणंति, लद्धा हणंति, मद्धा हणंति, कद्धा-लद्धा-मद्धा हणंति। अत्था हणंति, धम्मा हणंति, कामा हणंति, अत्था-धम्मा-कामा हणंति।
१८. कुछ मंद बुद्धि जीव जो हिताहित के विवेक से सर्वथा शून्य अज्ञानी, दारुण मति वाले होते हैं, वे क्रोध से प्रेरित होकर, मान, माया और लोभ के वशीभूत होकर तथा हँसी-दिलबहलाव के लिए, रति, अरति एवं शोक के अधीन होकर, यज्ञ आदि वेदानुष्ठान के लिए जीवन, धर्म, अर्थ एवं काम के लिए, (कभी) स्ववश-अपनी इच्छा से और (कभी) परवश-पराधीन होकर, (कभी) प्रयोजन से और ॥ (कभी) बिना प्रयोजन के त्रस तथा स्थावर जीवों का घात करते हैं।
वे बुद्धिहीन क्रूर प्राणी स्ववश (स्वतंत्र) होकर घात करते हैं, विवश होकर घात करते हैं, म स्ववश-विवश दोनों प्रकार से घात करते हैं। कई प्रयोजन से घात करते हैं, कई निष्प्रयोजन घात करते :
हैं, कई सप्रयोजन और निष्प्रयोजन दोनों प्रकार से घात करते हैं। (अनेक पापी जीव) हास्य-विनोद से, + वैर से और अनुराग से प्रेरित होकर हिंसा करते हैं। कई क्रुद्ध होकर घात करते हैं, कई लुब्ध होकर + हिंसा करते हैं, कई मुग्ध होकर, तथा कई क्रुद्ध-लुब्ध-मुग्ध तीनों ही कारणों वश हिंसा करते हैं। कई
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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
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Shri Prashna Vyakaran Sutra
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