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卐 दीविय-मयकुहिय-विणटुकिविण-बहुदुरभिगंधेसु अण्णेसु य एवमाइएसु गंधेसु अमणुण्ण-पावगेसु ण ! र तेसु समणेण रूसियव्वं जाव पणिहिएंदिए चरेग्ज धम्म।
१६७. तीसरी भावना घ्राणेन्द्रिय संवर है- घ्राणेन्द्रिय से मनोज्ञ और घ्राणप्रिय गंध को सूंघकर (रागादि नहीं करना चाहिए)।
[प्र. ] वे सुगन्ध क्या-कैसे हैं ? __[उ. ] जल और थल में उत्पन्न होने वाले सरस पुष्प, फल, पेय पदार्थ, भोजन, कमलकुष्ठ, तगर, तमालपत्र, सुगंधित छाल-दालचीनी आदि, दमनक (एक विशेष प्रकार का फूल)-मरुआ, इलायची का , रस, पका हुआ जटामांसी नामक सुगंध वाला द्रव्य, गोशीर्ष नामक सरस चन्दन, कपूर, लोंग, अगर,
कुंकुम, कक्कोल-गोलाकार सुगंधित फलविशेष, उशीर-खसखस, श्वेत चन्दन, खुशबूदार पत्तों व अन्य में ॐ सुगन्धित द्रव्यों के संयोग से बनी श्रेष्ठ धूप की सुगन्ध को सूंघकर (रागभाव नहीं धारण करना चाहिए) 5 तथा भिन्न-भिन्न ऋतुओं में उत्पन्न होने वाले अत्यंत गहरी सुगन्ध वाले एवं दूर-दूर तक फैलने वाली है
सुगन्ध से युक्त पदार्थों में और इसी प्रकार की मनोहर, नासिका को प्रिय लगने वाली सुगन्ध के विषय म में मुनि को आसक्त नहीं होना चाहिए, यावत् अनुरागादि नहीं करना चाहिए। उनका स्मरण और विचार
भी नहीं करना चाहिए। __इसके अतिरिक्त घ्राणेन्द्रिय से अमनोज्ञ और अशुभ गंधों को सूंघकर (रोष आदि नहीं करना
चाहिए)। ___ [प्र. ] वे अशुभ गन्ध कौन-कौन से हैं ?
[उ. ] मरे हुए सर्प, मृत घोड़ा, मरे हुए हाथी, मरी हुई गाय तथा भेड़िया, कुत्ता, श्रृंगाल, मनुष्य, बिल्ली, सिंह और चीता आदि के सड़े-गले शवों की, जिसमें कीड़े बिलबिला रहे हों, दूर-दूर तक असह्य दुर्गन्ध फैल रही हो तथा इसी प्रकार के और भी अमनोज्ञ और असुहावनी दुर्गन्धों के विषय में है साधु को रोष नहीं करना चाहिए यावत् अपनी पांचों इन्द्रियों को वशीभूत करके चारित्र धर्म का आचरण करना चाहिए।
167. The third sentiment is restraint of smell. A monk should not become attached at the smell pleasant to the sense of smell.
[Q.] In what from is that smell ?
[Ans.] There are beautiful flowers and fruits growing in land and in water. There are eatables, drinks, utpalakushth, tagar, tamaal leaves, 4 ॐ sweet smelling skin of plants, damanak (a special type of flowers),
marua, cardamom, jatamasi, gosheersh sandalwood, camphor, clove,
agar, kumkum, kakkol (a fragrant round fruit), usheer, white 5 sandalwood, special incense prepared with mixture of fragrant 5
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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
(424) Shri Prashna Vyakaran Sutra
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