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55555555555555555555555555555555555 + रयहरण-चोलपट्टग-मुहणंतगमाईयं। एयं पि य संजमस्स उववूहणट्टयाए वायायव-दंस-मसग-सीय
परिरक्खणट्ठयाए उवगरणं रागदोसरहियं परिहरियव्वं, संजएण णिच्चं पडिलेहण-पफोडण-पमज्जणाए ॐ अहो य राओ य अप्पमत्तेण होइ सययं णिक्खिवियव्वं च गिहियव्वं च भायण-भंडोवहि-उवगरणं।
१६१. शास्त्रविधिनुसार चलने वाले पात्रधारी सुसाधु के पास जो भी काष्ठ पात्र, मिट्टी के बर्तन, उपधि और उपकरण होते हैं, जैसे-पात्र, पात्र बांधने की झोली, पात्रकेसरिका, पात्रस्थापनिका, पटल,
रजस्त्राण, गोच्छक, तीन प्रच्छाद, रजोहरण, चोलपट्टक, मुखानन्तक-मुखवस्त्रिका, ये सब भी संयम की ॐ वृद्धि या पुष्टि के लिए होते हैं तथा वात-प्रतिकूल वायु, ताप, धूप, डांस-मच्छर और ठंड से अपनी
रक्षा बचाव के लिए हैं। इन सब उपकरणों को राग और द्वेष से रहित होकर साध को धारण करने 3 चाहिए अर्थात् रखना चाहिए। सदा इनका प्रतिलेखन-देखना, प्रस्फोटन-झाड़ना और प्रमार्जन-पौंछना 5 चाहिए। दिन में और रात्रि में सतत-निरन्तर अप्रमत्त (सावधान) होकर भाण्डोपकरणों को रखना और ग्रहण करना चाहिए।
161. The articles which a monk has are in order to glorify his life of ascetic restraint. They are pot, earthen pitcher, other articles such cloth
to hold the pots, Patra-Kesarika-the cloth to clean the pots, Patra卐 Sthapanika-the seat on which pots are placed, Patal-three pieces of fi cloth to cover the pots, gochhak—the small broom to clean the pot, three
Prachhaad-three clothes to cover the body, Rajoharan-the broom, E Chulapattak-the cloth to be worn at the waist, mukhanantak
mukhvastrika for the mouth. He has articles to protect him from wind, heat, sun, mosquito bite and cold also. He should keep all these articles without any feeling of attachment or hatred. He 'should regularly look at them during the day and the night in a state free from any slackness. He should wipe them. He should carefully handle his pots and articles.
विवेचन : उपरोक्त सूत्र पाठ में 'पडिग्गहधारिस्स' इस विशेषण पद से यह सूचित किया गया है कि विशिष्ट जिनकल्पी साधु के सिवाय केवल पात्रधारी स्थविरकल्पी साधु के उपकरणों का यहाँ उल्लेख किया गया है। ये उपकरण संयम की वृद्धि और प्रतिकूल परिस्थितियों में शरीर की रक्षा के लिए ही ग्रहण किये जाते हैं, इन सब उपकरणों को 'न सो परिग्गहो वुत्तो' कहकर परिग्रह मानने से सर्वथा इन्कार किया है। उपरोक्त पाठ में दिये इन उपकरणों के नाम का अर्थ इस प्रकार है -
पतद्ग्रह-पात्र-आहारादि के लिए काष्ठ, मृत्तिका या तूम्बे के पात्र। पात्रबन्धन-पात्रों को बाँधने की झोली। पात्रकेसरिका-पात्र प्रमार्जन के लिये पोंछने का वस्त्रखण्ड। पात्रस्थापन-जिस कम्बल के टुकड़े पर पात्र रखे जायें।
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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
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Shri Prashna Vyakaran Sutra
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