________________
फफफफफफफफफफफफफ
चेव ओसहीणं। ९. सीतोदा चेव णिण्णगाणं । १०. उदहीसु जहा सयंभूरमणो । ११. रुगयवरे मंडलियपव्ययाणं पवरे । १२. एरावण इव कुंजराणं । १३. सीहोव्व जहा मियाणं पवरे । १४. पवगाणं चेव वेणुदेवे । १५. धरणी जहा पण्णगिंदराया । १६. कप्पाणं चेव बंभलोए । १७. सभासु य जहा भवे सुहम्मा । १८. ठिइसु लवसत्तमव्य पवरा । १९. दाणाणं चेव अभयदानं । २० किमिराउ चेव कंबलाणं । २१.संघयणे चेव वज्जरिसहे । २२. संठाणे चेव समचउरंसे । २३. झाणेसु य परमसुक्कज्झाणं । २४. णाणेसु य परमकेबलं तु पसिद्धं । २५. लेसासु य परमासुक्कलेस्सा । २६. तित्थयरे चैव जहा मुणीणं । २७. वासेसु जहा महाविदेहे। २८. गिरिराया चेव मंदरवरे । २९. वणेसु जहा णंदणवणं पवरं । ३०. दुमेसु जहा जंबू, सुदंसणा विस्सुयजसा जीए णामेण य अयं दीवो । ३१. तुरगवई गयवई रहवई णरवई जह वीसुए चेव राया। ३२. रहिए चेव जहा महारहगए।
एवमणेगा गुणा अहीणा भवंति एग्गम्मि बंभचेरे । जम्मि य आराहियम्मि आराहियं वयमिणं सव्वं सीलं तवो य विणओ य संजमो य खंती गुत्ती मुत्ती तहेव इहलोइय- पारलोइयजसो य कित्ती य पच्चओ तम्हा णिहुएण बंभचेरं चरियव्धं सब्बओ विसुद्धं जावज्जीवाए जाव सेयट्ठिसंजओ त्ति एवं भणियं वयं
य,
भगवया ।
१४२. इस प्रकार प्रशस्त लक्षणों वाले भगवान ब्रह्मचर्य की बत्तीस उपमायें इस प्रकार हैं
१. जिस प्रकार ग्रहगण, नक्षत्रों और तारों के बीच में चन्द्रमा प्रधान है, ऐसे ही सब व्रतों के बीच ब्रह्मचर्य प्रधान है।
२. मणि, मुक्ता, शिला, प्रवाल और लाल (रत्न) की उत्पत्ति के स्थानों (खानों) में समुद्र प्रधान है, उसी प्रकार ब्रह्मचर्य सर्व व्रतों का श्रेष्ठ उद्भव स्थान है।
३. मणियों में वैडूर्यमणि जैसे श्रेष्ठ है, वैसे ही व्रतों में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ है।
४. आभूषणों में मुकुट के समान है।
५. समस्त प्रकार के वस्त्रों में क्षौमयुगल- कपास के वस्त्रयुगल के सदृश है।
६. पुष्पों में श्रेष्ठ अरविंद कमलपुष्प के समान है।
७. चन्दनों में गोशीर्ष चन्दन के समान है।
८. सब औषधियों के जनक हिमवान् पर्वत की तरह यह भी सब व्रतों का जनक है।
९. जैसे नदियों में शीतोदा नदी प्रधान है, वैसे ही सब व्रतों में ब्रह्मचर्य प्रधान है। (यहां सीतानदी भी समझ लेनी चाहिए, क्योंकि दोनों समान है)
चेव
१०. समस्त समुद्रों में स्वयंभूरमण समुद्र जैसे महान् है, उसी प्रकार व्रतों में ब्रह्मचर्य महत्त्वशाली है।
११. जैसे माण्डलिक अर्थात् गोलाकार पर्वतों में रुचकवर (तेरहवें द्वीप में स्थित ) पर्वत प्रधान है, उसी प्रकार सब व्रतों में ब्रह्मचर्य प्रधान है।
श्रु.२, चतुर्थ अध्ययन : ब्रह्मचर्य संवर
*****
Jain Education International
(353)
Sh. 2, Fourth Chapter: Chastity Samvar
For Private & Personal Use Only
259595955 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 5 5 5 55 5 5 5 5 5 595959 552
www.jainelibrary.org