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5 चौथी भावना - निर्भयता FOURTH SENTIMENT FEARLESSNESS
१२५. चउत्थं - ण भाइयव्वं, भीयं खु भया अइंति लहुयं, भीओ अबितिज्जओ मणूसो, भीओ भूहिं धिप्प, भीओ अण्णं वि हु भेसेज्जा, भीओ तवसजमं वि हु मुएज्जा, भीओ य भरं ण णित्थरेज्जा, सप्पुरिसणिसेवियं च मग्गं भीओ ण समत्थो अणुचरिउ, तम्हा ण भाइयव्वं । भयस्स वा वाहिस्स वा रोगस्स 55 वा जराए वा मच्चुस्स वा अण्णस्स वा एवमाइयस्स । एवं धेज्जेण भाविओ भवइ अंतरप्पा संजयकर-चरण - णयण - वयणो सूरो सच्चज्जवसंपण्णो ।
१२५. चौथी भावना निर्भयता - भय का त्याग है । भयभीत नहीं होना चाहिए । भयग्रस्त मनुष्य को 5 अनेक भय शीघ्र ही जकड़ लेते हैं। भीरु मनुष्य अकेला-असहाय होता है । भयाक्रांत मनुष्य भूत-प्रेतों से ग्रस्त हो जाता है। दूसरों को भी डरा देता है। भयभीत हुआ पुरुष निश्चय ही तप और संयम को भी छोड़ बैठता है । भीरु साधक भार का निस्तार नहीं कर सकता अर्थात् स्वीकृत कार्यभार अथवा संयमभार का भलीभाँति निर्वाह नहीं कर सकता है । भीरु सत्पुरुषों द्वारा सेवित मार्ग का अनुसरण करने में समर्थ नहीं होता। इसलिये (किसी मनुष्य, पशु-पक्षी या देवादि अन्य निमित्त के द्वारा जनित अथवा आत्मा द्वारा जनित) भय से, व्याधि-कुष्ठ आदि से, ज्वर आदि रोगों से, वृद्धावस्था से, मृत्यु से या इसी प्रकार के अन्य इष्टवियोग, अनिष्टसंयोग आदि के भय से डरना नहीं चाहिए। इस प्रकार का चिन्तन करके धैर्य-चित्त की स्थिरता अथवा निर्भयता से भावित अन्तरात्मा - अन्तःकरण वाला साधु हाथों, पैरों, नेत्रों और मुख से संयत, सत्य व्रत पालन में
शूरवीर तथा सत्यता और निष्कपटता से युक्त
(भवित)
हो जाता है।
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125. Fourth sentiment is absence of fear. One should not feel frightened. A frightened person soon falls a prey to fear. He is without any assistance. He causes fear to others also. A frightened person certainly discards austerities and self-restraint. A frightened person cannot overcome fear. He cannot properly discharge his social or religious duties. He cannot properly practice monkhood. A coward person is not capable of treading the path followed by the true monks. So one should not feel frightened as a result of the fear, disease, illness, state of old age or death created by human beings, animals, birds or celestial beings. He should not feel afraid of any segregation from things of his liking and forced acceptance of things he does not like. Such a monk has a stable state of mind. He has control over his hands, feet, eyes and mouth. He is brave and truthful. He leads the life of straightforwardness.
पाँचवीं भावना- हास्य- संयम FIFTH SENTIMENT DISCARDING LAUGHTER
१२६. पंचमगं - हासं ण सेवियव्वं अलियाई असंतगाई जंपंति हासइत्ता । परपरिभवकारणं च हासं, परपरिवायप्पियं च हासं, परपीलाकारगं च हासं, भेयविमुत्तिकारगं च हासं, अण्णोष्णजणियं च होज्ज
श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
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Shri Prashna Vyakaran Sutra
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